किताब में वो सूखी विद्या
अकेला था वो दिन चंद,
एकांत, फिर भी अकेलेपन से दूर,
अपने आप में खोया, खुश, बंद।
साथी मेरे कलम, कागज़, उंगलिया,
सोच - कल, आज और कल की,
खँगाली कुछ पुस्तकें, कोई कटी, कोई फटी.
मिली पाँचवी की गणित की किताब।
कभी जो थी बहुत बड़ी, दुरूह,
आज लगी छोटी, प्यारी, धूल से सनी ।
पापा के हाथ से लिखा वो नाम,
वो मोती से अक्षर, खो गए वो हाथ,
नीचे मेरा नाम लिखने की कोशिश
जो ना तब पड़ा गया, न अब पड़ा जाता ।
यादों को दे परवाज़, कुछ पन्ने उलटे,
खोजता उसमे अंजाना कुछ,
दिखा वो सूखा पत्ता, वो विद्या का पत्ता
१९६८ से २०२०, कितने युग का इतिहास ।
विद्या, मान्यता थी बच्चों में, उस पत्ते की
एक हलकी सी याद आयी।
उस भोले बचपन की,
जब पत्ते से भी विद्या आती।
कुछ पहाड़े, कुछ जोड़, घटा,
ऐसा सीखा उस छोटी उम्र में,
लिखना बोलना सिखाया किताब से
खुद खड़ा होना भी, सीखा टीचर से ।
याद आया स्कूल का आखरी दिन,
गेट पर बैठा मैं, अकेला,
शायद रोता, भूख औ प्यास से
इंतज़ार करता बस का, दुःख से।
तभी एक सहपाठिन, देख मुझे गेट पर,
रुकी, बतियाई मेरे साथ, साथ बैठे पल ।
दोनों पकड़ कर हाथ दोनों का,
गए थे सड़क के किनारे ,
एक एक विद्या का पत्ता तोड़ा,
दिया एक दूसरे को,
साथ में बच्चों का ज्ञान
"सुन, विद्या को किताब में रखेंगे ,
कक्षा में हमेशा अव्वल आएंगे"।
ना कोई सोच, ना कोई समझ,
केवल एक ख्याल था सांझा ।
बच्चों का वो सोच का सांझा करना
बड़ो से बेहतर बच्चे, यही देखना ।
गणित के पन्नों में वो सूखी विद्या,
याद सिर्फ दिल को आज छू गयी
आज फिर से आँखों में दिखने की
एक अधूरी सी कोशिश कर गयी ।
याद दिला दिया बचपन की वो मासूमियत,
ReplyDeleteवो विद्या की खोज में इधर-उधर भटकना
पड़ने से ज्यादा भगवान पर भरोसा
परिक्षा में आंख बंद कर उंगली का क्रास करना