कुछ दिन पहले ही शैल चतुर्वेदी की कविता सुनी फिर एक बार। शैल, यानी चट्टान, एक थी साथ में शैलजा, यानी शैलपुत्री, जो की दुर्गा माता का एक और नाम है क्योंकि वो हिमालय की पुत्री है। वैसे शिला भी पत्थर है, और जब पहाड़ से टूट कर गिरे तो शिलाखंड। यों तो शिलाजीत एक जड़ी बूटी है, पर शिला वृष्टि अगर सर मुंडाते ही आ जाए तो मुसीबत है।
पुरुष शालीन हो और स्त्री शालिनी, सब को नाम पसंद है कि नामकरण करने वाले ने उनमें शील की कल्पना की होगी। शील तो उत्तम है, लेकिन फिर भी कुछ लोग शील या शीला से उत्तमतर की सोच में सुशील या सुशीला हो जाते हैं। शायद ही कदाचित किसीने कुशीला या कुशील सुना हो, पर कुशल तो अक्सर मिल जाते हैं, और सब कुशलता की ही तलाश करते हैं, कुशल कु रहते हुए भी बुरा नहीं, अच्छा ही है।
अब जीवन शैली ही ऐसी है दुनिया की कि हर कोई व्यस्त है खुद को दूसरे से आगे रखने की होड़ में, चाहे इस दौर के दौड़ में दूसरों को अड़ंगी ही करते जाएं। भूल जाते हैं कि सदव्यवहार की शैली ही है जिससे कुछ सिला मिल सकता है। वैसे मैं वस्त्र सिलने की बात नहीं कर रहा यह तो समझ ही गए होंगे।
बाकी फिर अगले भाग में।
अनुप मुखर्जी "सागर"
Good one ,true
ReplyDeleteवाह क्या बात है
ReplyDeleteVery true
ReplyDeleteक्या खूबसूरत वर्णना की है, एक जैसे लगने वाले शब्दों की।
ReplyDeleteKabhi socha na tha itne shabd mere naam ke karib hai. Great
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