फंस गई कये सेरा
जी हाँ,यह मेरी ही दुःख भरी दास्तान है। मैं, एक फोटोकॉपी मशीन, फ़ैक्टरी में बन कर, बहुत अच्छी तरह पैक होकर, जैसे की मानो माँ के गर्भ में बच्चे की तरह सुरक्षित, सागर महासागर की यात्रा कर, उसके बाद क्रेन , ट्रेन और ट्रक से गुजरते हुए एक ऑफिस में स्थापित की गई। लकड़ी के बक्से के गर्भ में कुछ महीने विश्राम करके, इस संसार में पदार्पण किया। बहुत बड़ा ऑफिस, बहुत सारे लोग, बहुत सारे कागज, देख देख मेरा मन खुश हुआ जाता। मुझे एक कमरे में बैठाया गया। एक साइक्लोस्टीलिंग की मशीन थी,उसको विदाई की तैयारी के हिसाब से ही मेरा आगमन हुआ था। मुझे चलाने वाला था हेमंत, दफ्तरी।
मुझे लेकर आये कंपनी के आदमी ने हेमंत को अच्छी तरह से समझाया मुझे कैसे चलाना है, मेरा दिमाग गरम होने पर क्या करना और कागज अटकने पर क्या। हेमंत ने शराफत से सब सुना और अपनी कॉपी में लिखा भी काफी कुछ। फिर कंपनी के आदमी ने कहा, मशीन यही रहेगी क्या ?
हेमंत, "जी, वो तो यही रहेगी साहब, मुझे ही चलना है। "
कंपनी, "लेकिन इस मशीन को तो एयर कंडीशन में रखने की ज़रूरत है वर्ना यह ख़राब हो जाएगी। "
हेमंत, "उसका फैसला तो बड़े साहब लोगों को लेना है, मैं नोट बना कर फाइल भेज देता हूँ। "
सब कुछ समझा कर कंपनी का आदमी चला गया। हेमंत ने एक ऑफिस नोट लिखा, "कये सेरा की फोटो कॉपी मशीन मेरे कमरे में लगी है, कंपनी के इंजीनियर ने कहा है कि मेरा कमरा ठंडा रहना ज़रूरी है वर्ना मशीन ख़राब हो जायगी इसलिए मेरे कमरे में एक ए सी लगाने की इज़ाज़त दी जाये " और लिपिक के सामने फाइल रख दी।
लिपिक ने लिखा, कृपया संलग्न नोट पर अपनी प्रतिक्रिया दीजिये, और मुख्य लिपिक को भेज दी। मुख्य लिपिक बड़े बाबू ने अपने अवर सचिव को उन्होंने अपने और उन्होंने अपने ऊँचे अधिकारी को । फाइल अपने उर्धगामी यात्रा में लगी रही, दो महीने बीत गए। फरवरी में लगा मैं कये सेरा मार्च ख़तम कर अप्रैल में आ गई। उधर तापमान ३२ डिग्री पार कर ४० की ओर भाग रहा था और इधर मेरा दिमाग रोज गरम होते होते एक दिन फट गया। इंजीनियर आया, उसने प्यार से पुचकार कर मुझे थोड़ा शान्त किया और चलने के लिए तैयार किया। फिर हेमंत को बताया, भइये बिना ए सी के यह कये सेरा सेर के भाव भी न रहेगी, इसलिए ऊपर वालो को जगाओ ।
अब फाइल की खोज शुरू हुई, तो पता चला की मुख्य सचिव के निजी सहायक के पास पड़ी है। उसको जगाया, तो उसने छोटा सा मंतव्य लिखा। "दफ्तरी ए सी की सुविधा का हक़दार नहीं है इसलिए उसके कमरे में ए सी नहीं लगाया जा सकता। " और सचिव के दस्तखत करवाकर नीचे भेज दिया। फाइल जैसे ऊपर गयी थी वैसे ही नीचे आ गयी।
मुझे दफ्तर के आचार नवाचार से क्या लेना देना, मुझे तो पैदा ही किया गया था कि इधर गर्मी बड़ी , उधर मेरा दिमाग भी गरम हुआ। मेरा दिमाग, शरीर, सब गरम होता, दफ्तरी इंजीनियर को बुलाता, वो मेरे ऊपर हाथ फेर कर, सहानुभूति के दो बोल मुझे और दो दफ्तरी को बोल कर मुझे एक दो दिन चलने लायक बना देता। अब मैं कोई इंसान तो नहीं कि बेल का शरबत, कच्चे आम का पाना, ठंडा सत्तू और निम्बू पानी पिला पिला कर काम करवा ले।
ए सी का प्रस्ताव और उसकी फाइल नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे होते होते अगस्त बीत गया, जुलाई की उमस भरी गर्मी में एक दिन मैंने हार मन ली थी। कये सेरा की देह को उस दफ्तरी के कमरे में छोड़ कर मैंने तो स्वर्ग की राह पकड़ ली थी। उसके तुरंत बाद मेरे कुछ अंग प्रत्यंग कुछ डाक्टरों ने बाहर भी निकाल दिये, और अपने सोमरस का आयोजन कर लिया।
जब तक कये सेरा के दफ्तरी के कमरे के लिए ए सी का प्रस्ताव मंज़ूर होकर पहुंचा, मेरा तो सम्पूर्ण "राम नाम सत्य" हो गया था।
जाने से पहले, मैं सिर्फ यही बोल पाया था दफ्तरी और इंजीनियर को, "फंस गई कये सेरा "
An emotional katha beautifully told.
ReplyDeleteAn emotional katha beautifully told.
ReplyDeleteलाल फीता शाही का एक दुखद नमूना प्रस्तुत किया है आपने । मुझे आश्चर्य नहीं होगा अगर यह किसी सरकारी विभाग या कंपनी के वास्तविक दास्तां भी हो । लाल फीता शाही तो अभी भी चल रही है, चलती चली जाए इसकी डगर, कभी खतम न हुया इसका सफर, कम से कम विश्व के इस हिस्से में
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