शब्द रहस्य -६-सोना

शब्द रहस्य -६-सोना 



जी, आज का शब्द, सोना। 

सोना किसको पसंद नहीं है? सारे दिन की थकान के बाद जब शरीर को आराम दिलाने का वक्त मिलता है, तब हम सब सोते है, और उसको ही सोना कहते हैं।  बिस्तर चाहे कैसा भी हो, थकान ज़्यादा हो, और नींद भी आ रही तो, तो सोना मिलेगा।  ना मिले तो तबियत ख़राब। 

अब धरती से सोना निकलता है, जिसको ठोक पीट कर गहने बनाए जाते हैं, वो भी सोना है।  इसके बारे में तो कबीर जी भी कह चुके हैं कि धतूरे से ज़्यादा नशा तो इस सोने में है।  वैसे किसी किसी को पहले वाले सोने का भी नशा होता है। 

यानि की पहला सोना, नींद में सोना।  दूसरा सोना, खनिज, जो धरती से निकला। 

लेकिन उसका क्या जो गाना गाता है, "मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती।" जी, किसान जब मेहनत करता है, तो उसके लिए भी कहा जाता है, धरती चीर कर सोना निकला, या फिर सोने की फसल निकली। 

सोना कुछ और भी होता है, "ओ मेरे सोना रे सोना रे सोना" चीख चीख कर गाना गाया, लेकिन सोना नाम की धातु नहीं, बस एक इंसान को जताने के लिए की "प्यार हो गया"  . 

वैसे एक ज़मीदार की कहानी सुनी थी, ईश्वर से वरदान माँगा कि कुछ भी स्पर्श करूँ, सोना बन जाये. ईश्वर ने कहा तथास्तु। 

बस, जो भी वस्तु छुए, सोना बन जाये।  शुरू में तो बहुत खुश, फूलदान, मेज, सब सोने के।  जब भूख लगी, तो थाली को छुआ, और वो सोने की बन गई।  जैसे ही अन्न को हाथ लगाया, वो भी सोने का।  अब परेशान, क्या करे, कोई दूसरा खिलाए तो भी रोटी उसके होंठों को छूते ही सोने का बन जाये। तभी दो संतानें दौड़ कर आये और ज़मींदार से लिपट गए, और फिर तो जमींदार के ऊपर आसमान टूट पड़ा।  जमींदार को स्पर्श करते ही बच्चे भी सोने की  मूर्तियां बन गए ! फिर, मुझे पता नहीं :)

चलिए, आज यहीं समाप्त।  आगे एक दिन और। 


अनुप मुखर्जी "सागर"


2 comments:

  1. सोने जैसी सोच है तेरी सोने जैसी अभिव्यक्ति। पढ़कर धन्य हुआ

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