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वो नीली आंखे


वो नीली आंखे



ऑफिस में नए डायरेक्टर आए थे। पुराने डायरेक्टर के साथ उनकी निजी सचिव भी नौकरी छोड़ गई थी । अब नए डायरेक्टर के लिए सचिव की आवश्यकता थी और आज उसके लिए साक्षात्कार का दौर चल रहा था । सिर्फ चार पांच उम्मीदवारों को ही बुलाया था । मुझे प्राथमिक बात चीत और उनके काग़ज़ात जांचने के बाद ही डायरेक्टरों के पास भेजना था और उसी जांच में पहली और तीसरी महिला असफल रही। मेरी टिप्पणी के आधार पर डायरेक्टर ने उनको मना कर दिया। दूसरी और चौथी महिला, दोनों 35 के ऊपर की थी और उनका अनुभव उनकी बोलचाल और चालढाल में झलक रहा था । दोनों को बोला गया कि दो दिन में बताएंगे।
पांचवी और आखरी उम्मीदवार थोड़ा देर से आयी, मुझे लगा कि कैसी उम्मीदवार है जो साक्षात्कार में ही देर से आ रही है अब वो चाहे सिर्फ 10 मिनट ही हो, तो काम पर क्या करती होगी। चौथी उम्मीदवार तब भी थी इसलिए मैंने पांचवीं उम्मीदवार को अपने सामने बुला लिया और थोड़ा रूखे स्वर में कहा कि कम से कम ऐसे समय पर तो वक्त का ख्याल रखना चाहिए।

उसको मैंने फॉर्म दिया भरने को। वो मेरी ही मेज पर मेरे सामने फार्म भरने लगी, पर उससे पहले धीमे स्वर में माफी मांग ली कि 10 मिनट की देरी इच्छाकृत नहीं थी। इस इलाके में कभी आयी नहीं थी इसके कारण देर हो गई। सांवली सी लड़की, जिससे तीस की गिनती अभी दूर ही थी । मुझे लगा कि कैसे डरी हुई सी थी। उसकी झील सी नीली आंखे आकर्षित करती, और आंखो के नीचे काला सा गड्ढा उसकी ज़िंदगी की शायद किसी जंग की तरफ इशारा कर रहा था। उसके व्यक्तित्व में एक लावण्य पूर्ण माया झलक रही थी, विशेषकर उसके चेहरे से।

एक दम अलग, सबसे अलग। मेरा पहला ख्याल यही था। उसका फार्म देखते हुए मैंने कुछ खाली प्रश्नों के बारे में पूछा और साथ ही पूछा, अगर यह नौकरी नहीं मिली तो क्या वो किसी और नौकरी के लिए तैयार होगी? उसने हां में जवाब दिया ।

साक्षात्कार हो गए, और डायरेक्टर ने उसको मना कर दिया। अपने ऑफिस के अनुभव में हजारों उम्मीदवारों को मना किया होगा, कभी किसी को याद नहीं रखा लेकिन उस नीली आंखो वाली लड़की में शायद कुछ था जो भूला नहीं। उसकी आवाज़ बहुत धीमी और नरम थी जैसी कोई बहुत दूर के रेडियो पर कोई मध्यम आलाप चल रहा हो। उसने जाते हुए धीरे से धन्यवाद किया और बोला कि अगर और कोई जगह खाली हो तो उसे बुला सकते हैं या नहीं। उसको दिलासा भरा जवाब दिया, लेकिन मन में झूठ बोलने की एक ग्लानि भी रख ली । ना वो चमकदार थी, ना किसी तरह के महंगे कपड़ों और मेकअप में और ना ही किसी तरह से ज़्यादा खूबसूरत, लेकिन कुछ ऐसी की नजर अपने आप ही उस की तरफ घूम जाए। 

शाम को घर पहुंचा तो पाया कि मां बैठक में थी और उनका कमरा बंद था। मैंने पूछा क्या हुआ, दरवाजा बंद क्यों? तो मां ने कहा, पापा के भोपाल वाले शर्मा भाई साहब की बेटी आयी है नौकरी के लिए, तो मैंने आज जाने नहीं दिया। आयी है तो दो चार दिन रह ले । हमारे रहते उसको किसी बात की तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए। यह मेरे घर पर एक आम बात थी इसलिए बात को दूसरे कान से बाहर निकाले नहा धो कर चाय पीने बैठा। आंखों के सामने वहीं नीली आंखें और कानों में नर्म आवाज शायद गूंज रही थी।
 
मुझे लगा वो फिर उसकी आवाज़ असल में आ रही थी, नमस्ते। सागर जी, नमस्ते। 

मै आंखे बंद किए आवाज़ को महसूस कर रहा था कि मां की आवाज़ आयी, अरे बेटा हाथ में चाय लेकर सो गया क्या? देख स्मिता नमस्ते कर रही है जब से और तू जवाब ही नहीं दे रहा।

मां के खनक से थोड़ा चौंक कर आंख खोली तो सामने वो खड़ी थी, मां की दी हुई साड़ी पहने, नीली आंखें, काला सा निशान आंखों के नीचे। अब पूरी तरह से चौंकने की बारी थी।

अरे आप! 

जी, मैंने तो सोचा था आंटी से मिलकर चली जाऊंगी पर इनकी ज़िद के आगे हार गई। मुझे तो यहां आने के बाद पता चला कि दिन में आपसे मिल कर आ रही हूं।

'स्मिता', मां बोली, 'देख बेटी, जब तू यहां आयी है तो मैं ऐसे कैसे जाने दूं? और अपनी शक्ल तो देख, आंखो के नीचे काले गड्डे हो गए है। कम से कम एक हफ्ता रोकूंगी तुझे।'
 
मुझसे कोई जवाब देते नहीं बना। वो माँ की बात का जवाब दे रही थी।  मेरी तरफ मुखातिब हो कर बोली, मुझे यहाँ आने पर पता चला कि मैं ऑफिस में आप से ही मिल कर आ रही हूँ।  कितने साल हो गए, मुझे तो याद भी नहीं था कि  आप कैसे दिखते  है। 

'हाँ, मुझे भी याद नहीं, और मैं तो उस वक्त भोपाल में बहुत ज़्यादा रहा भी नहीं, होस्टल में ही रहता था।  घर तो कभी कभार ही जाता था।'

' अच्छा, मुझे यह नौकरी मिल सकती है क्या ?'

'यह वाली तो नहीं मिल सकती क्योंकि इसमें तो डायरेक्टर किसी अनुभव वाली को लेंगे लेकिन मैं कोशिश करता रहूँगा। '

'अरे बेटी तू यहाँ कहाँ आकर नौकरी करेगी, भोपाल में ही रह ले। बाकि अगर ... माँ बहुत कुछ बोलती रही, स्मिता भी बतियाती रही।  माँ का कहा तो साफ़ सुनाई दे रहा था, पर स्मिता की तो जैसे आवाज़ तो जैसे उसके पास जाकर सुनो तभी सुनाई दे।  

उसकी उपस्थिति से मैं ढक गया था पूरी तरह। उसकी आवाज़ तो मध्यम लय के वॉयलिन की तरह नरम फिर भी हलकी गूंज लिए, जैसे एक ऐसा आलाप जिसको तबले या पखावज की घनक भी शायद चीरती हुई सी लगे।  मुझे लग रहा था कि स्मिता बोलती रहे, बोलती रहे। 

मां ने उसकी बात मान कर तीसरे दिन उसको जाने की इजाज़त दी और मैं उसको बस में बिठाकर बस की तरफ देखता रहा। मुझे लगा कि वो भी मेरी तरफ देख रही थी। और कोई भी बात किए बगैर मां को इस स्थिति का पता चल गया। 

हमारी बात कोई नहीं हुई लेकिन मां और पिता जी ने बात आगे बढ़ाई और स्मिता से मेरी शादी तय कर दी ।
उस साक्षात्कार को हुए 8 साल हो गए। हमारी शादी के भी 6 साल। और स्मिता, जिसकी नीली आंखों की काली गहरी खाई जिसको मां कभी ना भर सकी, उसको ईश्वर के पास गए हुए एक साल। आज उसका पहला वार्षिक श्राद्ध हुआ। उसकी नर्म आवाज़ खो चुकी थी, उसकी अनजानी बीमारी की भेंट चढ़ चुकी थी। 

लेकिन आज फिर मेरे कान में उसके पहले शब्द गूंज गूंज रहे थे, नमस्ते सर, मैं स्मिता शर्मा, इंटरव्यू के लिए आयी हूं। मुझे अफसोस है कि मैं दस मिनट की देरी से पहुंची हूं।

एक साल पहले उन नीली आंखो को हम लपलापती आग में झोंक चुके थे। इंटरव्यू पर दस मिनट की देरी लेकिन ज़िन्दगी की रफ्तार में इतना तेज़ की सब को, यहां तक कि अपने बुजुर्गो को भी पीछे छोड़ कर बहुत आगे निकल गई। बहुत ही ज़्यादा। और मैं आया था गंगासागर में उसकी वर्षान्त अंतिम क्रिया करने, सागर के नीले जल में उसकी आंखो की गहराई, और विदाई के वक्त की दो बूंदे जो उस झील से निकल कर पलकों पर अटक गई थी, उसकी असहनीय व्यथा की अंतिम आह की निशानी, मानो उन्हीं दो बूंदों से ही इस सागर की रचना हुई हो। उस व्यथा के स्पंदन से उसदिन एक अनसुनी आवाज़ आ रही थी, मैं जा रही हूँ, वापस आने के लिए।  मेरा इंतज़ार करना, प्लीज़। 

और मैं इंतज़ार करता रहूँगा, ढूँढता रहूँगा, उस समय को जब वो नीली आंखे मेरे सामने होंगे, वो भोली मधुर आवाज़ फिर कानों में गूंजेगी। 

 


Comments

  1. Totally different genre from what you normally writing. I notice this change is coming in your writings, the variety is coming. Keep on Anup. Bravo

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  2. Nice. You have good writing skills. :)

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  3. Beautiful story. 'Death' does not spare anybody - either young or old; though it does create vacuum in the life of a person who faces the trauma. Worth reading. Ashhok saxena

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हिन्दी एक सशक्त, सजग, सजीव, आत्मिक भाषा है। मेरा प्रयास है चन्द शब्द चुन कर उनकी खूबसूरती का आनन्द उठाना, और आपके साथ सांझा करना। खूबसूरत रहस्य -१  शब्द रहस्य -२- शैल, शिला, शैली  शब्द रहस्य ३ - जल  शब्द रहस्य ४ - अग्नि   शब्द रहस्य - ५ - मिट्टी  शब्द रहस्य - ६  सोना  अनुप मुखर्जी "सागर"

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CA Anup Kumar Mukherjee, 67 Fellow member of the Institute of Chartered Accountants of India; IS Auditor; a Bachelor of Commerce from SRCC, University of Delhi is the brain behind the formation of the group.  CA Mukherjee is a  Management Consultant, Author, and a Personality Coach. He looks after the MSME businesses of his clients guiding them to follow solid principles to sail to success. CA Mukherjee is also the Founder member of the  PIO Chamber of Commerce & Industry,  currently holding the post of Treasurer and managing its Indian operations from its office in New Delhi. Click here   for the Index of English Essays Click here for   the Index of English Stories and Poems Click here for   the Index of Bengali Stories and Poems  Click here for  the Index of Hindi  Stories and Poems  Click here for   the Index of Photographs PREFACE Being a Chartered Accountant, a thorough professional, with an addiction to reading, understanding, and writing; frequently writing original reports,