नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः नैनं चैनं क्लेदयन्त्यपो न शोषयति मारुतः ॥ ..

 नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः नैनं चैनं क्लेदयन्त्यपो न शोषयति मारुतः ॥ ..




 इक माचिस की तीली जली,
इक चिंगारी, कुछ अंगारे दहके, 
लकड़ियां घी पीकर जल उठी, 
लेटी रही तुम, लील गयी प्यासी अग्नि तुम्हें। 


कुछ आवाज़ें दब गयी, 
कुछ गलों से चीख निकली, 
प्यार, स्नेह करते थे जो सब, 
देखते रहे, आग की गोद में तुम। 


रिश्ते सारे तोड़ चुकी थी, 
बंधन सभी तुम काट चुकी थी, 
धागे सब बिखरे पड़े रहे, 
फेविकोल भी न तुम्हे जोड़ सके। 


आग भी न जला सकती, 
शस्त्र न तुम्हे छेद सकते, 
सब से ऊपर चल चली तुम, 
अग्नि रथ पर सवार, रानी तुम। 


सफलता तुमने बहुत बटेरी ,
आशीर्वाद सबका बहुत संवारा, 
जाओ तुमको विदा किया, 
आत्मा तुम्हारी एकात्म हुई, 
परमात्मा के अंश में पूर्ण हुई। 


खुश रहो, मोक्ष प्राप्त करो, 
विचरते देखते वैकुण्ठ से,
साथ रहो फिर भी, 
अपने माँ पिता, बंधुओं से ।


अनुप  मुखर्जी "सागर"

1 comment:

  1. Whatever is expressed in the above poetry is totally correct. The use of apt words make the writing more powerful and interesting. You deserve, dear celebrated poet, all the praise for churning out mesmerizing poem.

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