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जीवन का भय

जीवन का भय 



आज करीब 40 साल हो गए उस घटना, नहीं, दुर्घटना को घटे हुए। आज मुझे अपने भैया की बहुत याद आ रही है। पुराने शहर दिल्ली में करीब बीस साल बाद आयी, बेटे के ससुराल की शादी के मेहमान के रूप में।  दिल धक् से रह गया जब देखा की यह शादी  का बड़ा सा होटल लगभग उसी जगह पर था जहाँ ४० साल पहले एक बंगले नुमा मकान को भैया की शादी के लिए लड़की वालों ने किराये पर लिया था।  और उस दिन भाभी को लेने के बदले हम भैया को कंधे पर लिटा कर ले गए, शमशान को। 

मैं, उर्मि, दो भाइयों की छोटी बहन थी, दोनों को बड़े भैया और छोटे भैया बुलाती थी। पर भैया सिर्फ एक जने को बुलाती थी। ताऊ जी के तीन बेटों में छोटे को भैया बुलाती थी। मुझसे करीब 13-14 साल बड़े, लेकिन मेरे सबसे अच्छे दोस्त, मेरे शिक्षक और पथ प्रदर्शक थे। बचपन हमेशा पास पास गुजरा। दिल्ली जैसे शहर में सब छोटे छोटे किराए के मकान में रहते थे और कभी भी एक दूसरे के घर चले जाते। ऐसा शायद ही कभी हुआ ही कि मैं मां बाबूजी के साथ ताऊ जी के घर गई और भैया के पास रुक ना गई हो। ऐसा भी हुआ कि मैं उनकी घर गई रुकने का पूरा प्लान बनाकर और पता चला कि भैया शहर से बाहर गए तो मैंने रुकने से मना कर दिया। भैया भी हमारे घर आ जाते तो ऐसा कभी नहीं होता कि मैंने उनको ना रोका हो। यह संबंध भाई बहन का ही नहीं केवल, गुरु शिष्या का भी था और दोस्त का भी। 

मेरे बड़े भैया की शादी पहले हो गयी और उसके बाद अक्सर हमारे घर पर अशान्ति होने लग गयी।  भैया उन दिनों नौकरी में अक्सर बाहर जाया करते और मैं भी कॉलेज से निकल कर कहीं नौकरी कर रही थी।  अपने मकान भी दूर दूर बन गए थे जिसके कारण वो बचपन का कभी भी दौड़ कर चले जाना बंद हो गया था।  फिर भी महीने में ४-५ दिन तो भैया आ ही जाते और मैं २-३ महीने में उनके घर रुकने को जाती, और सारी सारी रात बातों में गुजर जाती। ताई जी या किसी से डांट खाना भी उस आनंद का हिस्सा होता की दोनों की बातें ही ख़तम नहीं होती। 

हमारे घर की अशान्तियों के रहते ही भैया के बड़े भाई की भी शादी हुई, और काफी मन मुटाव के बाद वो संयुक्त परिवार से अलग हो गए।  उनकी बहनों की भी शादी हो गयी थी और ताऊ जी, ताई जी, मेरे माता पिता जी और भी सारे रिश्तेदार भैया के पीछे पड़े थे शादी करने के लिए लेकिन वो थे की राजी नहीं होते।  उनका सीधा जवाब होता शादी से किस लड़के के घर में शान्ति आयी है कि मैं शादी करूँ।  बातें कुछ इस कदर बढ़ गयी थी की वो अक्सर कहते कि घर जाने से जी घबराता है कि कब कौन सी बात पर शादी की बात चले और झगड़ा हो। 

और एक दिन सब बड़ों ने उनपर दबाव डाला, मनवा लिया। उस दिन भैया माँ और पिताजी को छोड़ने आये और वापस जाने से पहले बोले, सुन  उर्मि, इन सब ने ज़बरदस्ती हां तो करवाई लेकिन भगवान करे मेरी शादी न हो। मैं उनके मन के डर को जानती थी, सो कहा, भैया, जब तुम अपनी जिंदगी अपने उसुलों पर जीना चाहते हो तो भाभी भी मान जायगी, और हर लड़की लड़ाकू तो नहीं होती न।  हम तुम्हारी बहनें भी तो है, हम सब लड़ाकू हैं क्या ? 

ताऊ जी, पिता जी, एक और चाचा, सब ने मिलकर शादी तय कर दी।  लड़का लड़की देखने की रस्म और रोका हो गया।  लेकिन मजाल है कि भैया ने एक बार भी कोशिश करी कि अपनी वाग्दत्ता से मिल ले। ताऊ जी और लोगों के साथ उनके भावी ससुराल को देखने गए, उन्होंने मना कर दिया। 

वो अपने काम, काम और काम में डूबते चले जा रहे थे।  जो कहा जाता शादी की व्यवस्था के लिए, निर्लिप्त भाव से करते।  उनका स्वभाव जो काफी हंसमुख था और ज्ञान के भंडार को हमेशा बाँटने को तैयार रहते, वो कैसे अपने को जैसे हर चीज़ से हटाते जा रहे थे।  कोई उनका मजाक उड़ाता, शादी के बाद बीवी के पास रहना है तो अभी सबसे कटने की ज़रूरत नहीं है। कभी माँ और दीदियां कहती, तू टेंसन मत ले इतना, जब तू बुरा  नहीं चाहता तो बुरा नहीं होगा।  मैं कभी छेड़ती, कभी भैया की दीदी बनकर उपदेश देती और कभी दोस्त बन कर उनकी सोच बांटती, सहज करने की कोशिश करती और कभी बेटी बन कर लाड़ करती, किसी भी तरह से भैया सहज हो। 

शादी के दिन एक बड़ा बंगला किराये पर लिया गया था। लड़की वाले किसी और शहर से आए थे, कहाँ से, वो अब मुझे याद नहीं। वे पास के किसी होटल में थे और बड़े बंगले के एक हिस्से में हमे पहुंचना था। शाम के करीब छह  होंगे, एक गाड़ी में मैं, भैया, उनकी दो बड़ी बहनें आ गए।  बहनें सीधा ऊपर की मंज़िल पर चली गयी और मुझे और भैया को कहा नीचे बैठने को।  बड़े से हॉल में बीच में एक जमीन में जैसे कि धँसा हुआ सुन्दर सा भाग था और मैंने  कहा भैया, चलो नीचे की तरफ बैठते हैं। दूल्हे को अकेला छोड़ने का नियम नहीं था और मैं भी उनसे चिपकी हुई थी।  वो सुबह से तीन चार बार कह चुके थे कि शादी के लिए हाँ करके गलती कर दी। मैं दुनिया की हर तरह की बात करती जा रही थी, चहकती, छेड़ती, झगड़ती, और ज्ञान बांटती। 

मैंने दो तीन बार बोला, भैया, चलो बैठते हैं, पर वो कैसे सहमे से, अचानक  उनका चेहरा स्याह सा पड़ता लगा। मुझे कहते, यह इतने गहरे कुएँ में जाने को कह गए, यह तो मुझे मारने का षड़यंत्र अभी से रच लिया।  उनके चेहरे से साफ़ था कि वो मजाक नहीं कर रहे थे, वो भयभीत थे, मानों किसी भयानक चीज़ से डर लग रहा है।  देख, अगर मैं मरता भी हूँ न, उर्मि, तुझे बचना है, तुझे जीना है। उर्मि, मैं नहीं बचूंगा अब। 

मैं भी डर सी गयी, समझ तो नहीं आया कि क्या करूँ, पर उनका हाथ पकड़ कर बोली, भैया क्या बोल रहे हो? देखो, सिर्फ चार सीढ़ियां है और कितने अच्छे सोफे लगे हैं, चलो न भैया, वहीँ बैठे।  वो बोले, नहीं रे उर्मि, यह तो मरीचिका है, यह बहुत गहरा कुआँ है और हम मर जायेंगे, हमारी हड्डियां टूट जाएँगी, मैं तुझे नहीं जाने दूंगा नीचे। और उन्होंने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया, तू नहीं जायगी, गयी तो मर जायगी। 

मैं घबरा गयी, समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ, भैया को क्या हो गया, रोना आ रहा था।  खुद को संभाल कर मैंने उनका हाथ खींचा और उन दो चार सीढ़ियों से नीचे ले गयी, भैया चलो मेरे साथ, कुछ नहीं होगा, देखो मैं उतर रही हूँ।  उनको जैसे मेरी चिंता खा गयी, वो अपना छोड़ मुझे जोर जोर से डांटने  लगे, मेरी बात नहीं मानती, यह लोग हमें मार देंगे, शादी के लिए नहीं बुलाया, यहाँ मत जा, प्लीज़ मत जा, और मेरे साथ मुझे रोकते हुए नीचे उतरे।

अब उनको देखकर मैं पूरी तरह से घबरा गई और दीदी दीदी कह कर पुरे जोर से चिल्लाई।  भैया का हाथ एकदम बर्फ, आंखे पत्थर सी, और वो एक हल्की सी चीख के साथ गिर गए, मेरा हाथ छोड़ दिया। मैं एकदम बैठकर उनको हिलाने लगी, चिल्लाती रही, भैया, भैया , कोई देखो, भैया को क्या हो गया।  वो फर्श पर, उस नरम कालीन पर एक दम स्थिर।  दीदी, और आवाज़ सुन कर और भी लोग आये।  सबने उनको हिलाया डुलाया, चेहरे पर पानी के छींटे दिये , पर वो तो स्थिर, जैसे की समाधी में समा गए।  एक गाड़ी बुलाई गयी और उनको हस्पताल ले गए। मैं नहीं गयी, मेरी जाने की हालत शायद नहीं थी, कुछ समझ नहीं आ रहा था। 

एक दो घंटे के अंदर दो रिश्तेदार वापस आ गए, साथ में पुलिस वाले थे।  पुलिस वालो ने मुझसे बात करनी चाही क्योंकि मैं ही आखरी थी जिसने भैया से बात की थी।  उनका कहना था कि भैया की दोनों कूल्हों की हड्डियाँ और घुटने टूट गए थे और उसके कारण दिल के दौरे से उनकी जान निकल गयी थी। उनका पूछना था की उन्होंने कितने ऊँचे, या कितने मंज़िल से छलांग लगाई या किसी ने उनको धक्का दिया। मैंने किसी तरह से जो हुआ था वो ही बताया, लगातार रोयी जा रही थी। सपने मैं भी नहीं सोच सकती थी की मेरे भैया ऐसे ही चले जायेंगे। हर कोई मुझे ही पूछ रहा था, क्या हुआ। माँ, पिताजी, ताऊ जी, ताई जी, भाई और बहने, सब बदहवास से हो गए थे।  कुछ रिश्तेदारों ने बहुत मदद की।  लड़की वालों पर क्या बीती मुझे नहीं पता, पर मेरा रोना चीखना बंद नहीं हो रहा था, तो पिताजी और माँ मुझे लेकर हस्पताल गए जहाँ मुझे नींद का इंजेक्शन दे कर सुला दिया गया। मैं अगले दो दिन हस्पताल में रही। 

भैया को पोस्टमार्टम के बाद छोड़ा गया। उनके श्राद्ध में मैं उनके घर गयी, उस दिन के बाद मैं हिम्मत नहीं जुटा पायी की ताऊ जी और ताई जी से भी कभी मिल लूँ।  कहते हैं कि समय घाव भर देता है, शायद समय का साथ साथ मेरा घाव, अगर भरा नहीं, तो भी, समय ने ढक जरूर दिया था। समय के चक्र ने शहर ही छुड़वा दिया था। 

और आज, चालीस साल बाद, उस जगह, न भैया थे, न वो उम्र थी, न वो बंगला था, लेकिन, मेरा ढका हुआ घाव उजागर हो गया। आँखों से फिर वही धारा बह निकली, खुद ही पोंछ ली। 
 
भैया की बात याद रही थी, उर्मि, अपनी ज़िन्दगी हमें खुद को ही जीनी चाहिए। अपने आंसू खुद ही पोंछने चाहिए। सबसे बड़े सम्बन्ध माँ बाप होते हैं, फिर भाई बहन इत्यादि।  लेकिन सबसे भाग्यवान वो होते हैं जिनको कुछ ऐसे सम्बन्ध मिल जाये जो न माँ बाप हो, न सगे भाई बहन, लेकिन, जो इन सब का मिश्रण हो, जिसके कंधे पर सर रख कर शांति मिल सकती हो। 

और मेरे ऐसे भैया मुझे, हम सब को छोड़कर चले कैसे गए। कई बार कई लोगों से जानना चाहा, किसी की हड्डियां बिना गिरे, बिना चोट खाए कैसे टूट सकती हैं ? किसी मनस्तत्वविद ने बताया की मन इतना शक्तिमान है की शरीर में कुछ भी कर सकता है, अपनी सोच से हड्डियां भी तोड़ सकता  है,बेशक ऐसा लाखों में एक ही क्यों न हो। 

लेकिन वो लाखों मैं एक मेरे भैया क्यों बने, कौन जवाब दे सकता है ?


अनुप मुख़र्जी "सागर"
२७ अगस्त २०२० 



Comments

  1. बहुत अच्छा लिखा है। इस में काफ़ी कुछ हमारी जिन्दगी से मिलता है। अंत में जो हुआ वो सिंबॉलिक है। मन के किसी कोने में छुपा हुआ डर शायद स्वप्न बन कर सामने आया है।

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CA Anup Kumar Mukherjee, 67 Fellow member of the Institute of Chartered Accountants of India; IS Auditor; a Bachelor of Commerce from SRCC, University of Delhi is the brain behind the formation of the group.  CA Mukherjee is a  Management Consultant, Author, and a Personality Coach. He looks after the MSME businesses of his clients guiding them to follow solid principles to sail to success. CA Mukherjee is also the Founder member of the  PIO Chamber of Commerce & Industry,  currently holding the post of Treasurer and managing its Indian operations from its office in New Delhi. Click here   for the Index of English Essays Click here for   the Index of English Stories and Poems Click here for   the Index of Bengali Stories and Poems  Click here for  the Index of Hindi  Stories and Poems  Click here for   the Index of Photographs PREFACE Being a Chartered Accountant, a thorough professional, with an addiction to reading, understanding, and writing; frequently writing original reports,