पथ ही तुम्हारा पाथेय
तुम से ही तुम, तुम हो,
तभी तो पथ है, पथिक भी।
पथिक तुम, पाथेय केवल पाठ
तुम से ही तो देखो
बस रही यह पांथशाला
पथ, पथिक, पाथेय,
यही तो यथार्थ, नही
यह चित्र, या चित्रपट।
दिन के अस्त होने पर,
जब सरायखाने मैं बैठते,
नज़रे कुछ पीछे घूमती।
पैरों के छालें जब
उष्ण जल में धोते
तब छूटे हुए पथ
जैसे जीवित होते।
पथ के रोड़े , पैर के घाव
कहीं न खाना, कहीं न पानी ,
कहीं फिर अन्न भंडार,
कहीं फिर शीतल प्याऊ
दुःख तो अनेक, सहस्र,
कभी छवि होती सरल,
सुखद, आद्र, मनोरम।
आँखों में जब तैरते,
पेड़ घने, छावं , फल,
चित्रपट सजते जैसे,
नम्र, ठहराव, मनोरम।
छवि कभी दुःख भी देती,
छोड़ आये पथ को देखती।
बीती आशा, खोया भरोसा,
मिली निराशा, कुछ भूला सा।
कुछ सपने, कुछ खण्डहर ,
कुछ सुख, उफनते मन में
कुछ दुःख, जीवन पर भारी।
कुछ बांटते, मुस्कुराते,
कुछ बटोरते, भुनभुनाते।
कुछ मांगते, छीनते, हिसाब,
कुछ कम, कुछ ज्यादा, ख्वाब।
कुछ छूटे हुए वादे
क्षण कुछ प्यार के,
कुछ सत्य, असत्य,
कुछ न्याय, अन्याय,
कुछ शांति, अशांति,
कुछ असमर्थ, सामर्थ्य भी।
पांथशाला की सूखी रोटियां,
कुछ जाम, भांग, अफीम भी।
रात्रि विश्राम के आलिंगन,
आलिंगन के नशा, धुंधले,
बीते, कठोर, निर्मल, सब पथ।
उनिंदे नैन पथिकों के
सब एक ही पथ के साथी।
एक ही उनका पाथेय।
एक ही झोली कंधे पर.
एक ही पथ के पथिक,
एक ही दुःख सुख सबके भाग।
एक रात की यह पांथशाला
कुछ मुहूर्तों की यह सतीर्थता।
भोर की किरणों के संग ही
बिखर जाती, पाकर सूर्य की ज्वाला।
अन्तहीन पथ, हर पथिक का
खो जाती एक रात की सतीर्थता।
राम, श्याम, इक़बाल, जग्गी,
पृथक पथ, पृथक होती पांथशाला।
परिचय सब का केवल एक,
सब पथिक, सब सम गोत्र।
यद्ध करते, रोज़ नवीन।
दिन प्रतिदिन जीवन युद्ध,
भीत नहीं, सिर्फ पराक्रम,
इस पथ की यात्रा अंतहीन ।
नहीं अंतहीन नहीं,
सफलता तुम्हारे पास है।
सोई यह भीड़ है,
उठा तुम्हारा शीष है
जगाओ सहस्त्र मनुष्यों को
करो सार्थक यात्रा को।
गरज उठो पथिक
दूर करो संकोच, डर।
खोना था जो, खो चुके तुम,
अब तो चीर दिखाओ वक्ष को
किसने किया ह्रदय तुम्हारा विदीर्ण
किसने किया खँजर से वार।
चिन्हित करो आज उसे
करो उसपर चरम आघात।
करो मत खुद को वंचित,
उस सुख से अपने जीवन को
जिसको रखा विधाता ने
तुम्हारे लिए सुरक्षित।
संपादित २१ फरवरी २०२३
अनूप मुखर्जी "सागर"
बहुत अच्छा लिखा है पथ पथिक और सराय से जीवन का सार व्यक्त किया। जनता को जागने की प्रेरणा भी दी।
ReplyDeleteBeautiful poetry. Everything has been made crystal clear through use of amazing and clinching words which directly enter into the heart of the reader. Very, very lively and appealing.
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