किनारे किनारे

 


चले जा रहे थे किनारे किनारे
परवाह ना थी साहिल की,
ना तूफान से डरते थे
परवाह न थी विरोध की।

वृक्षों से फल मांग लेते
नदिया से लेते पानी ,
इंसानों को स्नेह करते,
स्नेह ही पाते, थे वो दानी।

राह में पड़ते जंगल कभी
कभी आते खेत लहलहाते ,
देखते पत्थर, बंजर भूमि कभी।

बंजारे से बन चलते रहे हम
गुरुकुल, मंदिर, शमशान,
रुके हर जगह, फिर चलते हम
चलते रहे हम, बिना किसी शान।

दृष्टि रखी सीमित जब तक,
चलते रहे इसी किनारे,
एक दिन कहता एक, क्यों चलते
व्यर्थ, चलो उस किनारे।

उधर की हरियाली देखो,
छाई हर तरफ है लाली देखो।
हर दिन मनती वहां होली,
हर रात उधर लगती दिवाली।

हमने कहा उस आगंतुक से,
पर देखो इस मांझी की नाव।
रोज उधर से फटेहाल मानव,
नदी पार आते इस गांव।

हरियाली किस काम की बोलो
जिसमे अन्न का दाना नहीं।
लाली सूर्यास्त की किस काम की
घर बार नहीं जब, छत ही नही।

होली के रंग रंगते जब वस्त्र
वस्त्र बदलने को और नहीं।
किसी की दिवाली, चलते पटाखे
किसी के जलाने को चूल्हा नहीं।

मुझे चलने दो अरे पथिक
मेरे ही पथ पर, इसी किनारे।
बंजारे को न दिखाओ सपने
सजते जो सब उस किनारे।

पंथी हूं मैं अंतहीन पथ का,
वापस आना तुम पथ पर।
चमकते अंधियारे थका दे कहीं,
मैं तो मिलूंगा यहीं, किसी मोड़ पर।


7 comments:

  1. सर आपकी कविता ए जीवन का सार बताती है !

    ReplyDelete
  2. Very well written good one

    ReplyDelete
  3. जीवन के साथ को बहुत सुंदर और संक्षिप्त में लिखा है। 🙏🙏

    ReplyDelete
  4. Amrish Aggarwal4 August 2021 at 13:20

    Very nicely composed poem!

    ReplyDelete
  5. Beautiful papaji, you've always been closed to nature and understand the reality of life also full of emotions. I couldn't read most hindi words I got help with my husband to translate them. He's amazed how talented you are.👏

    ReplyDelete
  6. बहुत ही सराहनीय प्रयास और सोच है।्

    ReplyDelete

Know Thyself. Only You know yourself through you internal Potency