आओ, मैं से अब हम 'हम' बने

आओ, 'मैं' से अब 'हम' बने
 कविता,रचना २२ मई २०१९


कभी हम सब 'हम' थे,
फिर मैं था, और तुम थे,
फिर सिर्फ मैं था, मैं रहा,
ना तुम रहे, ना हम रहे।

आओ सबका 'मैं' साथ बैठे,
कुछ एक बोले, कुछ दूजा बोले।
कुछ अश्क इधर बहे,
 कुछ आंसू उधर बहे।
 शब्द कुछ इधर  हिले,
लफ्ज़ कुछ उधर निकले।

सबका 'मैं'  अब साथ बैठे,
मैं से अब हम 'हम' बने।

फिर से नज़रें नीची करके,
दीदी और भैया की डांट सुने।
फिर से मां को तलाशे
बड़ी दीदी, बुआ या मौसी में,
फिर से पिता को खोजें
बड़े भाई, चाचा या बुजुर्गों में।

सबका 'मैं'  अब साथ बैठे,
मैं से अब हम 'हम' बने।

फिर से बैठे भाई बहन सब 
कुछ लड़े, और कुछ सांझा करे।
रिश्ते जो अब फुफेरे, ममेरे,
ना बोले उनको चचेरे, मौसेरे ।
ढूंढे रिश्तों में कुछ रिश्ते,
जो हो  सिर्फ,और सिर्फ अपने।

सबका 'मैं' अब साथ बैठे,
मैं से अब हम 'हम' बने।

माफी मांगे उस 'आप' से 
जिस 'आप' को हमने 'तू' बोला।
माफी मांगे उस दिल से 
जिसको अपनी जिद से तोड़ा।
माफी मांगे उन रिश्तों से 
जिनको हमारे गुस्से ने तोड़ा।
माफी मांगे उन रिश्तों से 
जिनमे हमने ज़हर था घोला।

माफी मांगे उन संबंधों से,
जिन पर हमने जिद थी थोपी।
माफी मांगे उन पलों से
जिनकी हमने रोशनी छीनी।
वापस देखे उन पलों को
जिन पर अपना अभिमान पाला।
माफ़ करें खुद को जब जब
घमंड का अपना भार बड़ा।

सबका 'मैं'  अब साथ बैठे,
मैं से अब हम 'हम' बने।

रखे ताक पर वो जो पल हैं
जिनको  तुम्हारे 'मैं' ने अपमानित किया।
ताक के फिर देखे उन पलों को
क्या उस 'मैं' ने सब कुछ ठीक किया।
माफी मानगो तुम्हारे 'मैं' से
माफी मांगो उन पलों से ।

सबका 'मैं'  अब साथ बैठे,
मैं से अब हम 'हम' बने।

याद करे कुछ मुस्कुराहटों को
याद करे कुछ हंसी के पलों को ।
याद करे कुछ बेवकूफियों को
याद करे कुछ हिदायतों को।
याद करे बचपन की छीना झपटी
याद करे वो कहानियां लिपटी।


सबका 'मैं'  अब साथ बैठे,
मैं से अब हम 'हम' बने।

वापस लाएं कुछ वो पल जब
भरोसा था जब सबका सब पर ।
दोस्ती वी थी भाई बहन की
न था वो लड़का, न थी वो लड़की।
दादी थी कभी हमारे बीच
सहेली, शिक्षिका, और क्या क्या।
पापा थे हमारे सबसे बड़े
कुछ अलग, सख्त, और प्यारे से ।
चाचा थे कुछ अलग, मेरे, तुम्हारे, और सब के
 देखते और दिखाते सपने हमारे सफलता के।
इन सब के साथ थी वो हमारी मां,
सबको साथ पिरोए जैसे मोती माला।

पता नहीं कब हम बड़े हुए
बड़ा हुआ हमारा अहम।
 मैंने सोचा मैं ही ब्रह्म,
तुमने सोचा तुम भी ब्रह्म ।
इसने सोचा वो ही शिव,
उसने सोचा वो थी दुर्गा।

दुर्गा ने अपना त्रिशूल उठाया
दिखा उसको हर तरफ महिषासुर।
शिव ने उठाया अपना कमंडल
तांडव का उसने दिया आभास।

बचपन में सीखा था वसुधैव कुटुंबकम्
अहम के द्वंद में सब भूल गए अपना कुटुंब।
देखा तब हम सब ने अपने अधिकार,
इच्छाओं की आंधी ने, किये मन के रास्ते बंद।
भूल गए थे सब तब,
वंशजों  में दिखेंगे, अपना ही प्रतिबिम्ब।
भयभीत करता अपना आईना
मजबूर मन शायद सोचता, क्या होना था ?

आओ अब पलट कर देखे
सबके 'मैं' को 'मैं' से मिलाये।
मिश्रित करे तुम्हारे और मेरे ब्रह्म को
निर्माण करे नारायण नया ।

शिव का तांडव कैलाश पर सीमित  हो,
दुर्गा युद्ध भी महिषासुर के साथ हो।
पृथ्वी और समाज शांत बने,
शांत बने, उन्नत बने, शिक्षित बने।

सबका 'मैं'  अब साथ बैठे,
मैं से अब हम 'हम' बने।

सबका 'मैं'  अब साथ बैठे,
मैं से अब हम 'हम' बने।

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