अग्नि, आग, इनका प्रयोग भी अलग अलग होता है, ज़रा मज़ा लीजिये।
अग्नि कन्या - द्रौपदी, अग्नि में से उत्पन्न हुई। दूसरी तरफ होलिका भी कन्या, जिसको वरदान था कि वो आग में नहीं जलेगी, पर जल गयी।
अग्नि में पूजा में आहुतियां अर्पण की जाती है, और पूजा के पश्चात अग्नि को ठंडा किया जाता है।
अग्नि का पर्यायवाची है आग, और बोलचाल में आग का की प्रयोग अधिक है. इंसान किसी दूसरे की उन्नति देखकर आग में जलता है, स्त्री पड़ोसन के घर शांति देखकर जलती है।
अंगीठी नहीं जल रही तो फूंक मार मार कर जलाते है, और आग बुझाने के लिए भी फूंक का ही प्रयोग होता है। जहाँ आग हो, धुआं वहीं होता है, यह लोग अक्सर कहते हैं, तो उनको बता दें की धुंआ बिना आग के भी काफी हो सकता है। जी, तरलीकृत नाइट्रोजन गैस देखिए, -१८६ डिग्री सेल्सियस, पर धुंआ किसी आग से काम नहीं।
वैसे जब दिल जलता है तो धुआं नहीं निकलता, हाँ, आँखों से आंसू टपक सकते हैं।
बहुत गर्मी पड़ी हुई हो तो कहते हैं हर तरफ से आग बरस रही है, लेकिन यह आग तो दिखाई नहीं, केवल अनुभव की जाती है ज़नाब। व्यवहार में जलन तो नहीं, गर्म जोशी की सब आशा रखते हैं, लेकिन जोशी साहब अगर ज़्यादा गरम हो गए तो लोग टोकते हैं, जोशी जी आग बबूला हुए जा रहे हैं।
बाकि और काफी है, थोड़ा और इंतज़ार।
अनुप मुखर्जी "सागर"
Keep it up 😃
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