मेरा चांद

 मेरा चांद

तू मेरा ही रहना



ढक देता हूं कभी टोपी से

रखता हूं अक्सर खुला ही,

चमकाता कभी अगर मिले

कुछ खाली समय, और तेल भी,

कभी खुश्क, कभी तेल, कभी पानी,

देता हूं तुम्हे, लेकिन रिश्ता तो अभिन्न।


सुन उस चांद पर उतरा भारत वर्ष का यान,

उस चांद पर बिकते सुना जमीन, क्या क्या।

परवाह नहीं उस चांद की मुझे,

न परवाह एक और चांद की 

जो कुंडली में जा बैठता किसी के,

कभी लघु, कभी गुरु, कभी मध्यम।


मेरा तो सिर्फ एक चांद, 

बाल एक भी न बिकाऊ जिसका।

चांद तो यह मेरा, सिर्फ मेरा,

मेरा ही रहना।



अनुप मुखर्जी "सागर"

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