एक तारे का संदेश
फैलाव चहुं ओर आंचल नीला,
तारों की चमकती बिंदियों से,
विधाता ने रची अद्भुत लीला,
सजाया ऊपर उसके, चंद्रमा से।
कभी कोई तारा टूटता, गिरता
गिरता किसी की गोद में, प्यारा,
आत्मा लेती रूप शरीर का,
बेटा, बेटी, कुछ भी, होता प्यारा।
बड़ा, छोटा, सफेद, थोड़ा पीला,
अलग अलग के तारे चमकते,
अलग अलग के रिश्ते बनते,
तारें जब जमी पर उतरते।
हाय, जब अचानक बुलावा आता,
वापस जाता तारा हमे समझाता,
उसने जो बांटना था प्यार उसका,
बांट चुका वो, वापस जाना था।
लेना था जो उसने दुलार,
ले चुका था सबसे वो प्यार,
इतनी ही थी मनुष्य जिंदगी,
घर होता उसका नभ अपार।
समझाता वो हमें आकाश से,
देख मुझे, मैं अब नया तारा,
देखता रहूंगा तुम्हे हर पल,
रोना मत, मैं हूं तुम्हारी,
सब की आंखों का तारा।
अनुप मुखर्जी "सागर"
बचपन की कहानियां याद आ गई। सब तारे बन कर अपने आंखों के तारों तो आशीर्वाद भी देते हैं और प्यार भी।
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