अजनबी शहर
जिंदगी कट गई शहर में,
फिर भी लगे जैसे अजनबी।
गलियां, रास्ते, फुटपाथ, पहचाने,
दीवारें और इंसान, अभी अजनबी।
दीवारें यहां बढ़ती गई, रिश्ते खो गए,
पड़ोसी से परिचय नहीं, सभी अजनबी।
गालियां परिचित, प्रतियोगिता अनंत,
अधिकारों का युद्ध सतत, शास्वत,
लक्ष्य सबका जीत, पराजय तो अन्य को,
शब्द अनेक, सहकर्मी अनेक, भीड़ अनंत,
हमकदम, हमराज़, हम सफर कहें किसको?
कट गई जिंदगी, परिचित अपरिचित शोर में,
संबंध टूटे, छिन्न भिन्न हृदय, रक्त रंजित, इस दौर में।
रात ढलती, इंतजार रहता, खिलता सूर्य, शांत सहर,
मिलता लेकिन सबको, सिर्फ यह अजनबी शहर,
सिर्फ, सिर्फ और सिर्फ, एक अजनबी शहर।
अनुप मुखर्जी "सागर"
Heart touching lines...Dil ko chu gayi...ek ajnabi
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