भाग्य का लिखा, या कीमत
रचना ९ मई २०१९
(बंगाली कविता ६ अगस्त २०१८ को लिखी थी. अब उसका अनुवाद प्रस्तुत है )
गलत कहाँ, कभी पता नहीं चला ,
कीमत गलती की? देता चला गया ,
अनंत काल कोशिश थी, कर लू हिसाब ,
मिला नहीं हिसाब कभी, शुन्य भी खो गया,
विशाल शुन्य में।
प्रश्न बहुत किए खुद को,
ज़वाब लुका छिपी खेलते रहे,
जीवन नदी जल की तरह बहता रहा
पर ये कैसी नदी, जिसको सागर ना मिला।
कितनी नौकाएं हुई पारापार ,
कितने जीवन जन्मे बारम्बार ,
शत शत आंसू बहे आँखों से ,
छिप गए श्रावण के बूंदो में।
देखी कितनी छावनियाँ
देखे कितने सौदागर,
मारते मुनीषों को, अपने हिसाब से।
देखे कितने मुनीषों को,
खो जाते अँधेरे कोप गलियारों में।
देखे कुछ मनुष्यों को,
जले वे अपने ही कर्तव्यों के तंदूर में।
देखा कुछ और को ,
उसी तंदूर में भोजन पकाते।
कोशिश बहुत करी, विधाता का हिसाब समझे
समझ न आया, यही है अपना, सबका विधान,
या फिर जीवन के असीमित भूलो की कीमत,
सिर्फ कीमत।
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Beautifully written poem. Keep it up, dear.
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