चुंधियाती रोशनी
दुनिया डूबी किस खेल में,
भीड़ में सब अकेले दौड़ते,
जलता हर कोई, रोशनी फैलाए,
खुद भी जलते, जलाते औरों को,
चुंधियाई आंखें, चमकते अंधियारे,
फिर भी अकेला! रोशनी के गलियारे?
भीड़ में सब अकेले दौड़ते,
जलता हर कोई, रोशनी फैलाए,
खुद भी जलते, जलाते औरों को,
चुंधियाई आंखें, चमकते अंधियारे,
फिर भी अकेला! रोशनी के गलियारे?
रोशनी की ज्वाला देख भीड़ उछलती, कूदती,
परेशान आंखें मेरी, चुंधियाई, कुछ न देखती।
कोई कहता इधर चल, कोई कहता उधर को,
कोई ठेले इस तरफ, धक्का कोई उधर को।
दिखता दिये के साथ ही फैलता अंधकार
हर दिन के साथ दिखती, काली रात कभी
आंख मूंद अपना, अंधकार दूर करूं खुद ही,
जब तू है साथ भगवान, अकेला न देखूं कभी।
रोशनी तेरी मेरे अंदर हो प्रज्वलित सदैव,
रोशन तेरी दुनिया तुझसे, हम भी तेरे, हे देव।
अनुप मुखर्जी "सागर"

भगवान को यदि हम अपने अंदर ढूंढ लें तो बाहर का अंधकार परेशान करना छोड़ देता है। बहुत सुंदर
ReplyDeleteNice exposition.
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