आओ मेरे आलय

 आओ आओ मेरे आलय आओ
आओ मेरे आलय।





बाहर निकल आओ, 
बाहर निकल आओ जो भी मेरे अंतर्मन में,
आओ आओ  मेरे आंगन, आओ मेरे आलय।

अरुण रथ पर आओ, स्वप्न द्वार भेद आओ,
क्षणिक आभास नहीं, बसो  मुग्ध नैनों में 
आओ, आओ, मेरे आलय आओ,
मेरे ही आलय।

दुःख सुख के झूलों पे आओ, 
प्राणवंत तरंगों पर आओ,
हे मधुर वन के आशा के अरूप रूप,
प्रफुल्लित पुष्प रूप अवतरित हो,
मेरे व्याकुल हृदय में।
आओ आओ मेरे हृदय में आओ,
आओ मेरे आलय।।


अनुप मुखर्जी "सागर"



5 comments:

  1. 🙏 अति सुन्दर रचना है

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  2. If somebody becomes Neutral, devoid of sukh or dukh, it is bliss. Man ko khali rakhna bahut hi jaroori hai, shanti paane ke liye..

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  3. Beautiful 👌

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  4. Very nice expression

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  5. Surprised to see the words used so meticulously & seeing Shiv Aradhna

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