आओ, हम धार्मिक बने

२४ जुलाई  २०१९

आओ, हम धार्मिक बने


मैं गर्वित अपने धर्म से,
तुम गर्वित अपने धर्म से।


मेरा मज़हब, तुम्हारा धर्म,
मेरा हवन, तुम्हारी अरदास।
मेरा दिया, तुम्हारी मोमबत्ती,
मेरी चुनरी, तुम्हारी चादर।

सब अर्पित एक रब को,
एक ख़ुदा को, एक अल्लाह को।
सब अर्पित एक भगवान को,
एक गॉड को, एक रचयिता को।

मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा,
बने सब एक मिटटी, एक ही ईंट से।
एक ही मज़दूर ईंट लगाता,
एक ही गाड़ी  सीमेन्ट  ढोती।

एक ही सूरज रोशनी देता ,
एक ही चाँद चांदनी देती।
एक ही बादल वर्षा देता,
एक ही हवा पूर्व से आती

फिर क्यों तुम डरे हो  मुझसे,
और मैं डरा हुआ, तुमसे ।
ना मैं तुम्हें धमकाता
ना तुम मुझ पर बरसते ।

दूर हटे सियासत दारों से
बच निकले ठेकेदारों से ।
हाथ बटाएं एक दूसरे का
गले मिले अब हम, हम से ।

आओ  अब कुछ धार्मिक बने
एक दूसरे का रब पहचाने ।
मानवता के आगोश में सब
सभी खुशी और गम हम बांटे।

आओ सब कुछ धार्मिक बने
सच्चे ईश्वर को पहचाने।
चाहे कहे पूजा या फिर इबादत
प्रेयर या फिर कहे अरदास।

तरीका हम अपना अपनाएं
सब की भावनाओं का करे आदर ।
गले मिले, साथ बैठे, मिल बैठे,
आदर करे सब का बिछाए प्रेम की चादर ।

आओ धर्म को पहचाने।
ईश्वर के संदेश को पहचाने।
धर्म नहीं एक प्रतियोगिता, यह जाने
धर्म अपनाएं, धार्मिक बने।

अनूप मुखर्जी "सागर"





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Know Thyself. Only You know yourself through you internal Potency