आओ बने मजबूत इंसान

 



 दोराहे पर कुछ मजबूत भी खड़े इंसान
मजबूरों की भीड़ में मजबूत भी खड़े इंसान।
चारो ओर लोग पुकारते त्राहिमाम  त्राहिमाम
इसी शोर में वो खड़े कुछ इंसान।
लाशों की भीड़, मरीजों का सैलाब,
गालियों की महाभारत, आरोपों की तर्ज,
इन सब से ऊपर उठ कर, 
सफेद कोट में डाक्टर और नर्स,
मजबूत खड़े हस्पताल में देखो कितने,
यही सब तो है इंसान।
खाकी, फौजी कपड़ों में भी खड़े,
संभालते, समझाते आपको
मास्क पहनो, घर पर रहो,
मजबूत खड़े यह भी इंसान।
शमशान में लाशों को जलाते,
कब्रिस्तान में उनको दफनाते,
सफेद किट में लिपटे कर्मी,
 यह भी है इंसान।
क्यों न हम भी मजबूत खड़े हो,
क्यों न हम भी कर्तव्य करे।
मजबूर नहीं, खुद को मजबूत करें।
क्यों नही मुंह और नाक ढकें,
क्यों नहीं अनुशासित बने?
केवल अधिकार का अंधा मोह क्यों?
क्यों नही कर्तव्यों का ज्ञान भी लें।
क्यों नही एक भूखे को खाना खिलाएं,
क्यों नही एक लाश को कंधा भी दें?
क्यों नहीं एक बीमार को खून दें,
क्यों नही एक नई मजबूती दे?
मजबूत खड़े मजबूरों की भीड़ में
वे कुछ लोग, नहीं देवता, वो ही इंसान,
चलें उनके साथ, कंधे से कंधा मिलाकर, 
हम भी उनके साथ रहे
बने मजबूत, बने इंसान, 
बने केवल मजबूत इंसान।
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Know Thyself. Only You know yourself through you internal Potency