मृगतृष्णा
दौलत की मृगतृष्णा
भटकता है इंसान,
दौलत मुकम्मल नहीं,
परेशान इंसान।
भटकता है इंसान,
दौलत मुकम्मल नहीं,
परेशान इंसान।
शोहरत का चक्रव्यूह
फंसा हुआ इंसान,
अभिमन्यु बन वध होता
सफलता की प्यास,
प्यास ही रहती
उड़ते चातक के प्राण हरती।!
फंसा हुआ इंसान,
अभिमन्यु बन वध होता
सफलता की प्यास,
प्यास ही रहती
उड़ते चातक के प्राण हरती।!
क्षोभ सबको कि वक़्त नहीं मिला,
वक़्त सबके पास, नहीं दिखता,
समय जरा दीजिए उनको
जिनमें नेह का एहसास है;
वक़्त को लेकर अधीर क्यों हैं,
आखिर कैसे वक़्त की तलाश है।
वक़्त सबके पास, नहीं दिखता,
समय जरा दीजिए उनको
जिनमें नेह का एहसास है;
वक़्त को लेकर अधीर क्यों हैं,
आखिर कैसे वक़्त की तलाश है।
मृगतृष्णा त्यागिए, खुल कर
देखिए, सोचिए, समझिए,
जिन्दादिल होकर जीवन जी लीजिए,
वक़्त, शोहरत, दौलत,
सब आपके पास है।
देखिए, सोचिए, समझिए,
जिन्दादिल होकर जीवन जी लीजिए,
वक़्त, शोहरत, दौलत,
सब आपके पास है।
मृगतृष्णा केवल एक भंवर,
दिशाहीन, व्याप्त, अंधकार।
दिशाहीन, व्याप्त, अंधकार।
अनूप मुखर्जी " सागर"
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