चार बंदर और दोस्ती दिवस

 





दो दोस्त, रविवार को सारा दिन दोस्ती दिवस मनाने के लिए घर से निकले, पता नही कहां कहां घूमते हुए सोमवार को सवेरे घर की तरफ जा रहे थे।

तभी एक ने दूसरे का हाथ खींचा और सड़क के किनारे इशारा किया और दोस्त को दिखाया, देख हम तो केवल दो ही दोस्त रहे यह देख यह चार दोस्त कल से खुशियां मना रहे है।

दूसरा, जिसका नशा थोड़ा उतर गया था और घर की तस्वीर थोड़ी उभर कर आ रही थी बोला, तू तो पागल है। यह कोई दोस्त नहीं है। वैसे इसके पीछे कुछ और हो सकता है। चार दोस्त नहीं, परिवार है। देख पापा बंदर बेटे के पांव से कांटा निकल रहा है। बहन दूसरी तरफ देख रही है उसे देखने में डर लगता है लेकिन हाथ तो भाई की पीठ पर है दिलासा देने के लिए।

मां बंदरिया गुस्से में दूसरी तरफ देख रही, इतनी बार बोला डाक्टर के पास ले जाओ, मेरी बात नही सुनते। अब उसका पांव काट कर ही मानोगे क्या। इतनी मन्नतों के बाद बेटा मिला और पूरा जोर लगा दो उसको लंगड़ा बनाने में। यह नहीं होता की डाक्टर के पास ले जायेंगे। कुछ  गलत हो गया तो मुझ से बुरा कोई नही होगा बता देती हूं।


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