शाम अभी बहुत दूर है
शाम अभी बहुत दूर है
पहले दोपहर का कुछ नशा तो उतार ले।
पहले दोपहर का कुछ नशा तो उतार ले।
क्या खूब बयां किया बहन तूने
तेरी कामयाबी की राहों में
गलतियां तो ना दिखी हमें।
हर मंजिल पर पकड़ तेरी
रहती थी मजबूत बहुत
केवल हम ही नहीं मुरीदों में
सज़दे किए फरिश्तों ने भी
गलतियां तो ना दिखी हमें।
हर मंजिल पर पकड़ तेरी
रहती थी मजबूत बहुत
केवल हम ही नहीं मुरीदों में
सज़दे किए फरिश्तों ने भी
कामयाबी की राहों में तेरे ।
मंज़िलें तो और भी,
मंज़िलें तो और भी,
जिनसे आगे बढ़ना है
अभी ढलते आफताब को न देख,
शाम अभी बहुत दूर है,
थोड़ा दोपहर का,
नशा तो उतर जाने दे।
चुभते ज़र्रों के ऊपर
गलीचे तुमने बिछाए
पैरों को दूसरों के जब राहत मिली
सिला तो मिला तुम्हें ही।
बगीचे बहार के
पैरों को दूसरों के जब राहत मिली
सिला तो मिला तुम्हें ही।
बगीचे बहार के
गुलों से संजोए तुमने
चमन की खुशबू तो,
चमन की खुशबू तो,
ज़माने ने ली उसकी।
पर फूलों ने नाम
पर फूलों ने नाम
तेरा ही लिया होगा।
फूल ऐसे बहुत अभी बाकि है रे,
इंतज़ार करते तेरा,
शाम को मिलेंगे कभी, तुझसे।
अभी ढलते आफताब को न देख,
शाम अभी बहुत दूर है,
थोड़ा दोपहर का
नशा तो उतर जाने दे।
मत सोच जब किसी ने कहा गलत तुम्हे
गलतियों के जीने ने ही तो
राह दिखाई जीने की तुझे ।
चौदवीं की चांदनी जैसी
शख्शियत तेरी फैली हवाओं में।
मुरीद तेरे अभी शुक्रगुज़ार हैं,
याद करते, बांटे जो इल्म तुझने, उन्हें ।
उठाना है तुझे अभी बहुतों को
गर्दिश के अंधेरों से।
अभी ढलते आफताब को न देख,
शाम अभी बहुत दूर है,
थोड़ा दोपहर का नशा तो उतर जाने दे।
झूठ सच के रेले , ग़म ओ' ख़ुशी के खेले
कल भी थे, आज भी है, यह तो चलेंगे।
अभी तो ज़िन्दगी की बहार बाहर छायी है
असर की नमाज़ भी रुखसत न हुई।
चार दिनों से अभी दो तो ही गुज़रे
ईशा की अज़ान में बहुत देर है।
ज़िन्दगी की शाम अभी दूर है
पहले दोपहर का कुछ नशा तो उतार ले।
अभी ढलते आफताब को न देख,
थोड़ा दोपहर का नशा तो उतर जाने दे।
हाथों में तेरे जादू की छड़ी ,
घुमाया तूने मुरीदों के लिए
जज़्बात देखे दूसरों के।
आओ, फिर एक बार बैठ जायें,
निम्बू पानी और भुने भुट्टे की महफ़िल जमायें
दिन अभी बहुत बाकि है
आओ ख्वाहिशों के महल फिर बनायें ।अभी ढलते आफताब को न देख,
शाम अभी बहुत दूर हैपहले दोपहर का कुछ नशा तो उतार ले।
और एक बात न भूलना कभी
एक ईशा से नमाज़ अदायगी पूरी नहीं होती।
अगली सुबह भी आएगी, दिन शुरू फिर होगा।
दिन की शाम बेशक आ जाये
ज़िन्दगी की शाम बहुत दूर है।
अभी ढलते आफताब को न देख,
पहले दोपहर का कुछ नशा तो उतार ले।
भाई का पर्याय ही ऐसा है जो गलतियां नहीं देखती। बहुत धन्यवाद इतना प्यार करने के लिए।
ReplyDeleteShayar apni kabitaen likh kar sunate hain mahphil me taki sunne wale wah wahai kare. Ek aap hain jo likhteto ho Kabir aur Gulzar jaise magar sunsaan kamre me akele hi unka aananand liye jate hain ek chetan ki tarah.
ReplyDeleteशाम पर नज़र न रखो दोस्त, नज़र तो रखो सहर पर। दोपहर का नशा काफी है शाम से नज़र हटाने को, रात तो नशीली है, सहर पर होश वापस देने को
ReplyDeleteAapka kobita bahut sundor hain
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