रिश्ता का चिराग
(मूल रचना २००९, मॉरीशस, सम्पादित २९ जून २०२०)
हर रिश्ता एक चिराग है,
इसको जलाए रखना।
यह एक आबाद गुल है
इसको खिलाए रखना।
हम रहे न रहे दुनिया में
हमारी याद दिल में बसाये रखना।
यह रिश्ता एक चिराग है,
इसको जलाए रखना।
हम भी चिराग जलाते
आये है ज़िन्दगी भर,
अंधेरों को भगाते रहे
चिरागो की रौशनी से।
तूफानों के थपेड़े देखे भी
वो भी बहुत सहे रास्तों पर
बुझने न दिया रिश्तों को
हवाओं के थपेड़ों से।
कुछ चिराग, अफ़सोस,
फिर हम समझ न सके
जिनको हमने अपना जान
दिल में अपने ही छिपाया
जिनको हमने महफूज़ रखा
अपनी शख्सीयत में
ऐसे ही कुछ की लौ
बहुत ज़्यादा हो गयी।
हमने लौ की गर्मी को
जब झेलने की क़ोशिश करी
चिराग ने दिल तो क्या मेरा
आशियाना तक जला डाला।
हमने तसल्ली कर ली, दिल?
वो तो जलते किसी ने न देखा
जलते आशियाने में आखिर,
किसी ने हाथ तो सेंका होगा।
उम्मीद की रोशनी का दीया भी ।
हमीं ने दिये से ही जलाया होगा ,
नाउम्मीदी इतनी भी ना हुई कि,
उम्मीद की चादर ही जलने दी।
उम्मीद की रोशनी का दीया भी ।
हमीं ने दिये से ही जलाया होगा ,
नाउम्मीदी इतनी भी ना हुई कि,
उम्मीद की चादर ही जलने दी।
आग लगा कर हँसने वाले
मिले तो बहुत हमें
जलते दिलों की लौ में
रोटियाँ भी सिकी होंगी।
ज़िन्दगी खुद की रौशन करने
खुद का दीया हमीं ने जलाया ,
कुछ दिलों को रोशन भी
उसी दीए से हमीं ने कराया।
उस चिराग की रौशनी
काफ़ी न थी ज़माने को.
वो आतुर था देखने
जलता आशियाना देखने ,
ज़िद हमारी भी थी,
अपना चिराग बचाने की
रोशनी चिराग की
दोस्तों में बाटने की।
वो न पहचाने हमें, हमारे जज़्बे को
बने वो आफताब हमें झुलसने को।
कहकशों से की दोस्ती हमनें
आशिआने वहां बनाने को।
ज़माने ने तूफ़ान बरपाए,
पहाड़ों में कैद किए इरादों को।
ज़िद ने हमारी उठाया
मजबूत फावड़ा अपना
ज़माने के पहाड़ खोद,
बनाया रास्ता अलग अपना।
रिश्ते बनाते गए, चिराग जलाते गए
संभालते गए रिश्तों को,
संभालते गए उन चिरागों को।
तुम बस सावधान थोड़ा रहना,
रिश्तों को संभालते रहना,
चिरागों को जलाते रहना।
रिश्तों को बचाते रहना,
चिरागों को संभालते रहना।
very touching and in the current day scenario fact of life.
ReplyDeleteदीये से दीया ही जलाओ
ReplyDeleteउम्मीद की रोशनी हतासे से ना बुझाओ
आग लगा कर हंसने वाले तो बहुत मिलेंगे
जिंदगी रोशन करने वालों को ही यादों में बसाओ।