उड़ चली अपना घोंसला बनाने

अरुणिमा 


झूमती, झूमती, झूलों पर
पता नही कब बड़ी हो गई
मेरी परी थोड़ी बड़ी हुई,
थोड़ी और, और थोड़ी,
और इतनी बड़ी हो गई,
उड़ चली अपने घोंसला बनाने।

क्या मिला, क्या दिया, 
हिसाब सब चुकता किया,
कुछ दुःख, कुछ सुख, 
कुछ शिक्षा, कुछ अनुशासन।

कुछ प्यार, कुछ आशीर्वाद, 
दिया हमने, जो जब संभव,
कुछ सम्मान, कुछ श्रद्धा,
कुछ तकनीक, दिए तुमने।

उड़ चली परी मेरी, अन्य वट,
अन्य शाख पर तिनके सजाने।

सौरभ के गौरव से गौरांवित 
प्रातः अरुण की किरणों से
प्रकाशित, शोधित, नीड़ तुम्हारा,
नीड़, शाख, वट ही नही केवल,
उपवन भी सुरभित हो, कस्तूरी 
सम हो संसार तुम्हारा।

महादेव की कृपा वर्षे, हो
उज्ज्वल खुद की ऊंचाइयां,
सुखी रहो, सफल बनो, 
यही परी, आशीर्वाद हमारा।
यही परी, आशीर्वाद हमारा।

अनुप मुखर्जी "सागर"





1 comment:

  1. पिता के हृदय से निकली भावनाओं को बहुत ही खूबसूरती से पिरोया है। हमारा भी आशीर्वाद बिटिया के साथ है।

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