प्रातः वंदन
बीती विभावरी हे री,
बीत गये अनेक वसंत।
बीत गये अनेक वसंत।
अंजलि भर भर लिया हमने
तुमसे माँगा, मिला दान अनंत ।
योग कुछ बनाओ ऐसे,
हे विधाता, तुम मेरे
अर्पित करूँ अपने को
जब तुम्हारे चरणों में
देना एक आखरी वरदान,
वर दो मुझे , चिर
जब तुम्हारे चरणों में
देना एक आखरी वरदान,
वर दो मुझे , चिर
परित्राण ।।
अनुप मुखर्जी "सागर"
Nicely worded beautiful poem.
ReplyDeleteBeautiful lines. Marvellous thoughts.
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