प्रातः वंदन

 प्रातः वंदन 



बीती विभावरी हे री,
 बीत गये अनेक वसंत। 

अंजलि भर भर लिया हमने 
तुमसे माँगा, मिला दान अनंत । 

योग कुछ बनाओ ऐसे, 
हे विधाता, तुम मेरे 
अर्पित करूँ अपने को 
जब तुम्हारे चरणों में 
देना एक आखरी वरदान, 
वर दो मुझे , चिर
परित्राण ।।

अनुप मुखर्जी "सागर"

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