मातृ दिवस, नमन मेरी मां को।
नमन मेरी मां को जिसने
मुझे जन्म दिया, शरीर दिया,
जिसने सब कुछ किया ताकि
संतान वयस्क हो, इंसान हो।
नमन, सिर्फ जन्मदात्री को नहीं,
नमन केवल कुंती, देवकी को नहीं,
नमन यशोदा को जिसने कृष्ण को थामा,
नमन राधा को, कर्ण का सहारा बनी,
दो महापुरुषों की दोनो माएं बनी।
नमन बुआ, मौसी, भाभी को
जिसने मातृ सम स्नेह, शासन, दुलार किया।
नमन उस मातृ सम दीदी को भी,
जिसने माता का स्नेह, आशीष दिया।
मां बाप के साथ कंधा मिला कर,
भाई बहनों का भविष्य बनाया।
नमन उस पिता, चाचा को, जिसने
झेले दुनिया के झंझावात, चुपचाप।
माता बन प्यार लुटाया, पिता बन
भीड़ से बचाया, लड़ना सिखाया।
खुद को रखकर सबसे ओझल,
न्योछावर किया अपना अस्तित्व।
नमन हे माते, माता, माता श्री,
नमन मातृ रूपेण हर वो रचना
स्नेह जो न्योछावर करती।
पर अनुरोध उन रचनाओं को,
जो माता माता में विभाजन करती,
अपनी माता को मां समझती,
दूसरे की माता में देखती शत्रु,
अनुरोध ऐसी रचनाओं से,
हर किसी के सम्मान को, अपने
तराजू में तोलती, जन्म दात्री गर नही,
मातृ सम मानने से जो इनकार करती।
अनुरोध, उठो और सम्मान करो,
हर उस नारी पुरुष का,
जिसमे है माता का स्नेह भरा।
सम्मान करो हर उस व्यक्तित्व का
जिसने किसी पर प्यार लुटाया,
संतान का स्नेह लुटाया।
शायद मां में हो कुछ कमी,
शायद ख्यालात हो पुराने,
न हो चालाक वार्तालाप में,
फिर भी जो मातृ रूप,
अतुलनीय, शास्वत तुम।
जठर से संतान शायद न निकले,
फिर भी हे मनुष्य,
सम्मान करो हर नारी का,
जिसने किसी को संतान माना,
यही होगा मातृ दिवस का पालन,
यही होगी मातृ दिवस की सफलता।
नमन हर माता को।
अनूप मुखर्जी
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