परछाईं, मेरी परछाईं,
मेरी प्रियतमा, हमदम,
मेरी दोस्त, हमकदम, प्यार,
मेरा साथी, हमराज़, मेरी परछाईं।
परछाईं हमेशा एक साथी होती है,
कभी लंबी, कभी बड़ी, कभी छोटी,
कभी मुझे घेर लेती है, अपने आगोश में,
कभी भींच लेता हूँ, उसे मेरी गोद में।
मेरी परछाईं, मेरी प्यारी,
मेरी ही दुनिया में खोई,
उसके अपनों को छोड़ कर,
परछाईं मेरे साथ चलती है,
क्या वो भी मेरे जैसी,
और न उसका कोई साथी।
मेरी दोस्त, वो मुझे समझती,
चुपचाप सुनती वो, जब मैं बोलता
दिल की बातें मेरी, उसके दिल तक जाती।
सैकड़ों शब्द वो बोलती,
देख कर मुझे उदास,
वह मुझे गले लगाती,
कहती, देखो, मैं हूँ तुम्हारे साथ।
जब मैं तपती धूप में जलता,
तो साफ़ परछाई मेरे साथ रहती,
स्पष्टता उसकी मुझमें हिम्मत देती,
सोचता, क्यों नहीं मैं उस जैसा, स्पष्ट ?
मेरी परछाईं मेरी प्यारी,
मेरी ज़िंदगी उसकी ज़िंदगी,
सब कहते तो सिर्फ स्वार्थी,
वो सिर्फ रौशनी में साथ रहती,
लेकिन मैं उसे तो पाता हूँ,
अपने पास, गहन अँधेरे में भी।
मैं परछाईं अनुभव करता,
मेरी गोद में छुपी हुई,
कभी वो मेरी गोद में छिपी,
कभी मुझे भींच कर,
अपने आलिंगन में वो,
सोख लेती सभी दर्द मेरे,
स्नेहिल स्नेह में समाते हम,
एक दूसरे के आलिंगन में।
अनूप मुखर्जी "सागर"
Excellent poetry 👍 earlier also read some poems on shadow but by far this is the best
ReplyDeleteExcellent
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