कहां तुम चले गए
मैंने पूछा हवाओं से
पूछा मैंने घटाओं से
राह देखती रही तुम्हारी
कहां तुम चले गए ।
सब ने मुझको समझाया,
दिल, दिमाग अपना समझा,
जाना सब को है एक दिन
वो भी गया जब उसका तय था।
दिमाग को तो दिल ने समझाया
आंखों को कौन समझाए
जो आज भी तरसती दीदार को
तुम्हारी मुस्कान, प्यार, डांट को।
कौन समझाए कानों को
जिन्हे लगती दुनिया ही गूंगी
ना सुनी जब से आवाज़ तुम्हारी।
लेकिन दिल जानता है फिर भी
कि तुम चले गए, तारों के देश।
मानता है दिल, देखते तुम मुझे
किरणे तारो की तुम्हारे हाथ
आशीष देते सदा मुझे, रोज़,
स्पर्श करते मेरे केश।
संसार तुमने बसाया तारों के देश
जगह एक रखना खाली तुम,
आयेंगे जब तुम्हारे प्रिय जन,
फिर जम बैठेंगे, अनंत, हम तुम।
अनुप मुखर्जी "सागर"
Touching the internal cord. Very sensitive and excellent expression. Keep it up
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