नफरत

 





नफरत है मुझे इस दुनिया से

नफरत है मुझे इस खुदा से
बड़ा यकीन था कि ऐ खुदा
दुनिया तूने बनाई, और सबसे बड़ा
इंसान तूने बनाए, सब समान से,
पर क्यों तूने ऐसी दुनिया बनाई,
गरुर और नफरत से दुनिया भर दी,
यकीन अब नही होता, या तो कह दे
यह नहीं तेरी दुनिया, नही तेरा इंसान।

या फिर कह दे, तू तो कही नहीं, नही
तुझे तो इंसान ने बनाया, खुद के पाप
ढकने के लिए, तुझ पर दोष मढ़ने को,
अपने पाप धोने को, एक बहाना चाहिए
खुदा का लिया बहाना, नाम भी दिए अनेक,
ईश्वर, गॉड, खुदा, आक्रमण जो करता,
वही खुद को कहता पीड़ित, मारता सबको,
कहता खुदा ने मारा, गर कहीं चोट लगी
खुद को, दुगना मारता पीड़ित को।

क्यों ऐसी दुनिया बनाई,
क्यों बनाए ऐसे इंसान।
या तो प्रमाण दे, तू हैं
या फिर ले आ, सैलाब।

मत कर माफ छुपे हुए
शैतानों को, हैवानों को।
मत कर जो बन गए गाली
रिश्तों के पैमानों को।

आजा, आजा अब तो आजा
जो भी रूप तुझे सुहाए, बस
कर, बहुत हुआ तेरा इंतजार,
ले आ प्रलय, ले आ सैलाब।


अनूप मुखर्जी "सागर"

1 comment:

  1. Very apt. Many times I also have same thoughts but you have put it in beautiful words

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