होली आ गई

 






 होली आ गई 

तीन महीने बीत रहें 
साल २०२४ देखो,
हर वर्ष की तरह ही 
आली, देखो फिर होली।।

कभी हमने भी  थी खेली 
रंगो से भरी, होती थी होली,
क्यों मनाते सब मिल होली, 
किसने शुरू की ये पहेली।।

पता न था, सोचा न था, 
रंगो के रंग में खो जाते,
रंगीन होते, झूमते, नाचते,
ख्याल एक, आयी होली।।

बड़े जैसे होते धीरे धीरे, 
लड़ते हुए ख्वाब भी हारे,
चलते लड़खड़ाए, पग हमारे,
फागुन, सावन, बीते सारे।।

सम्मान कम होता, हठ बढ़ते,
होली को भी औपचारिक बनाते,
त्यौहार मन के कम होते ,
अब केवल उपहार से बनते।।

आओ दोस्तों, आओ भाईओं, 
आओ बहनों, आओ, आओ, 
सब मिल आओ, अबके आओ,
मन को फिर रंगीन बनाओ।।

पहेलियाँ न सुलझेगी कभी, 
मैं भी पहेली, तुम भी पहेली,
रंग कपड़ों पर, रंग शरीर पर,
रंग है तुमपर, रंग है हमपर।।

मन को भी रंगीन बनाये, 
निर्मल, सरल, स्वच्छ बनायें,
संदेह, ईर्ष्या, दुर्गन्ध हटाएँ,
सोच निर्मल, सुगन्धित बनायें।।

वस्त्र, देह, मन, हो सब निर्मल
सोच, व्यवहार, भाषा हो स्वच्छ,
विचार विमर्श, जैसे झरना कलकल,
रंग होली के, करे मन रंगीन, निर्मल ।।

 

अनुप मुखर्जी "सागर "

3 comments:

  1. Marvellous poetry for all Holi lovers. Heart touching words.

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छा लेख

    ReplyDelete
  3. U n ur thoughts, outstanding 👏

    ReplyDelete

Know Thyself. Only You know yourself through you internal Potency