मैं रिक्त हूँ मैं तिक्त भी हूँ
दुनिया के झंझावातो से विरक्त हूँ
साथियों के तर्कों से मैं रिक्त हूँ
समय के थपेड़ो से मैं तिक्त हूँ
काल के षड्यंत्रों में मैं व्यस्त हूँ
प्रारब्ध के मूल्य निर्धारण में असमर्थ हूँ
भविष्य के आशंकाओं से मैं त्रस्त हूँ
वर्तमान में मैं सिर्फ तिक्त हूँ
मैं सम्पूर्ण रूप से रिक्त हूँ .
मुक्ति की वासना से सिंचित हूँ
अपने अंतिम लक्ष्य से मिलने को
आज मैं निश्चित हूँ
कब, कहाँ, कैसे, क्यों, कौन,
इन प्रश्नों से अब कहाँ चिंतित हूँ
रिक्तता में भी सम्पूर्ण हूँ
सम्पूर्णता में संतुष्ट हूँ
दुनिया के झंझावातो से विरक्त हूँ
साथियों के तर्कों से मैं रिक्त हूँ
समय के थपेड़ो से मैं तिक्त हूँ
काल के षड्यंत्रों में मैं व्यस्त हूँ
प्रारब्ध के मूल्य निर्धारण में असमर्थ हूँ
भविष्य के आशंकाओं से मैं त्रस्त हूँ
वर्तमान में मैं सिर्फ तिक्त हूँ
मैं सम्पूर्ण रूप से रिक्त हूँ .
मुक्ति की वासना से सिंचित हूँ
अपने अंतिम लक्ष्य से मिलने को
आज मैं निश्चित हूँ
कब, कहाँ, कैसे, क्यों, कौन,
इन प्रश्नों से अब कहाँ चिंतित हूँ
रिक्तता में भी सम्पूर्ण हूँ
सम्पूर्णता में संतुष्ट हूँ
फिर भी कुछ तिक्त, कुछ रिक्त हूँ |
अनुप मुख़र्जी "सागर"
Nahi, tum rikt nahi ho. Tum Tikt Nahi ho. Tumhe dekh kar to na jane kitne garv karte hai, aur sab ka garv aur samman he tumhai sampurnata hai
ReplyDeleteरिक्तता और संपूर्णता का द्वंद और मध्य की यात्रा ही जीवन है
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