आँख का मोती

आँख का मोती 

आंखों से जो छलकते मोती
नहीं उसको कीमत मिलती
आंखे ना बन जाए झुलसाता आफताब
आ जाने दो उनसे सैलाब
कहीं उसी से नजरिया बदले
दुनिया वाजिब इज्जत तो दे 
और नहीं तो बहे सैलाब का पानी
समुंदर के नमक से मिले आखिर
आंखों का ये नमकीन पानी
वहीं चलकर बनते है मोती
समुंदर की गहराई ने देखो
सहेजे, सोते वहां कितने मोती।

अनुप मुखर्जी "सागर"

1 comment:

  1. क्या बात है। मुझे गर्व है तुम पर।

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