मधुलिका
रचना २६ जुलाई २०१९
[संदर्भित काल १९७५ , स्थान देहली ]
माननीया भाभी जी
मेरा प्रणाम ग्रहण करिएगा। आपकी और परिवार की सकुलता की ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ।
मैं यह पत्र लिख रहा हूँ एक विशेष उद्देश्य से, और इसके आरम्भ में ही आप से क्षमा भिक्षा करता हूँ।
आप पिछले महीने हमारे घर पर आये थे भाई साहब के साथ और विवाह के उपरान्त वो आपकी प्रथम यात्रा थी उनके साथ। हमे बहुत अच्छा लगा था कि आप हमारे घर पर आये और कुछ दिन रहे. भाई साहब तो अपने काम के सिलसिले में पहले भी कई बार हमारे घर पर आ चुके हैं और हमारी ख़ुशी कई गुना बढ़ गयी कि शादी के बाद हमारा घर आप लोगो की नज़र में पहला घर था।
खैर, एक तरफ हमने प्रयत्न किया कि आपको कोई कष्ट न हो, और दूसरी तरफ, चूँकि आप हमारी पहली भाभी हैं, तो आप के साथ कुछ शैतानियाँ करने की चाहत को हम रोक न सके और यह पत्र उन्ही शैतानिओं का सच बताने और क्षमा मांगने के लिये लिख रहा हूँ।
मैंने १९७४ में दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई शुरू करी थी जो घर से बहुत दूर था। उन्ही दिनों एक बस रुट शुरू हुआ जिसका नाम 'मुद्रिका सेवा ' रखा गया था। कॉलेज जाने के लिये मुद्रिका बहुत उपयुक्त थी और प्रायः रोज सुबह शाम हम उसी में जाते आते थे। हमारे साथ कुछ कलाकार भी पड़ते थे जिनके साथ मिल कर हमने बस रुट का नाम 'मधुलिका ' रख दिए था जो हमारे पाठ्यक्रम में शामिल एक कहानी की नायिका का भी नाम था और हम लोग आपस में मजे लिया करते थे की मधुलिका हमे कॉलेज से घर और घर से कॉलेज ले जाती है।
जब भाई साहब शादी से पहले आये थे तो यह मजाक जो घर पर बहुत आम हो गया था उनके साथ भी हुआ कि मधुलिका के साथ दिल्ली घूम आइये।
आपके हमारे घर पर आने के दो - तीन दिन बाद मुझे शरारत सूझी और मैंने आपके सामने भाई साहब को कह दिया की इस बार आप मधुलिका से नहीं मिले, कम से कम मिल लीजिए क्योंकि वो पूछ रही थी। मैंने यह भी कहा कि अकेले मत जाइएगा, भाभी जी को लेकर जाइये ताकि वो भी मिल ले।
आप उसी समय पर नाराज़ हो गयी थी और हम सोच रहे थे की थोड़ा मज़ाक कर लेते हैं फिर आप भी समझ जाएंगे। दुर्भाग्य से बात बढ़ गयी किसी और बात को लेकर और आपने आपत्ति जता दी कि अगर शादी के पहले का कोई रिश्ता था तो आपसे शादी क्यों करी।
भाभी जी, आप याद करके देखिए, उस दिन सुबह इस बारे में बात चली और आपने कहा कि पता नहीं कौन है कैसी है यह मधुलिका जो लड़को को अपने गाड़ी में घूमती है और कॉलेज या दफ्तर छोड़ती है। इस पर चाचा जी ने कहा था कि वो एक बार में ५० से १०० जनो को अपनी गाड़ी में ले जाती है। आपने शायद ध्यान से सुना नहीं होगा। इसके अलावा जब आपने कहा कि ना जाने कितने पैसे बर्बाद किये होंगे तो मैंने कहा था कि एक बार में साठ पैसे, या ज़्यादा से ज़्यादा एक रूपए बीस पैसे खर्च किये। ऐसा कहा क्योंकि बस का टिकट तीस और साठ पैसे का है और अगर बीच में कही उतरते है तो भी एक रूपये बीस पैसे से अधिक खर्च नहीं हो सकते। याद करिए कि जब आप भी मुद्रिका से यात्रा करके लौटे थे तो आपसे पूछा था कि मधुलिका कैसी लगी।
तो भाभी जी, पत्र का सार, अर्थ और उद्देश्य यही है कि मैं आपको बताऊँ की मधुलिका कोई स्त्री नहीं, स्त्रीलिंग रचना जरूर है। हिंदी में बस स्त्रीलिंग है, और हमारे भाई साहब का किसी स्त्री या महिला से कोई भी सम्बन्ध दिल्ली में नहीं रहा। कृपया करके इस मुद्दे को, जो इस छोटे देवर का सिर्फ मजाक है, भूल जाइए। मुझे बहुत अफ़सोस है कि यह मुद्दा आपको बहुत तंग कर रहा है। उसके लिए एक बार और क्षमा प्रार्थना करता हूँ। जो भी सजा देना चाहे, वो सर आँखों पर।
आपका
सागर
मैं यह पत्र लिख रहा हूँ एक विशेष उद्देश्य से, और इसके आरम्भ में ही आप से क्षमा भिक्षा करता हूँ।
आप पिछले महीने हमारे घर पर आये थे भाई साहब के साथ और विवाह के उपरान्त वो आपकी प्रथम यात्रा थी उनके साथ। हमे बहुत अच्छा लगा था कि आप हमारे घर पर आये और कुछ दिन रहे. भाई साहब तो अपने काम के सिलसिले में पहले भी कई बार हमारे घर पर आ चुके हैं और हमारी ख़ुशी कई गुना बढ़ गयी कि शादी के बाद हमारा घर आप लोगो की नज़र में पहला घर था।
खैर, एक तरफ हमने प्रयत्न किया कि आपको कोई कष्ट न हो, और दूसरी तरफ, चूँकि आप हमारी पहली भाभी हैं, तो आप के साथ कुछ शैतानियाँ करने की चाहत को हम रोक न सके और यह पत्र उन्ही शैतानिओं का सच बताने और क्षमा मांगने के लिये लिख रहा हूँ।
मैंने १९७४ में दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई शुरू करी थी जो घर से बहुत दूर था। उन्ही दिनों एक बस रुट शुरू हुआ जिसका नाम 'मुद्रिका सेवा ' रखा गया था। कॉलेज जाने के लिये मुद्रिका बहुत उपयुक्त थी और प्रायः रोज सुबह शाम हम उसी में जाते आते थे। हमारे साथ कुछ कलाकार भी पड़ते थे जिनके साथ मिल कर हमने बस रुट का नाम 'मधुलिका ' रख दिए था जो हमारे पाठ्यक्रम में शामिल एक कहानी की नायिका का भी नाम था और हम लोग आपस में मजे लिया करते थे की मधुलिका हमे कॉलेज से घर और घर से कॉलेज ले जाती है।
जब भाई साहब शादी से पहले आये थे तो यह मजाक जो घर पर बहुत आम हो गया था उनके साथ भी हुआ कि मधुलिका के साथ दिल्ली घूम आइये।
आपके हमारे घर पर आने के दो - तीन दिन बाद मुझे शरारत सूझी और मैंने आपके सामने भाई साहब को कह दिया की इस बार आप मधुलिका से नहीं मिले, कम से कम मिल लीजिए क्योंकि वो पूछ रही थी। मैंने यह भी कहा कि अकेले मत जाइएगा, भाभी जी को लेकर जाइये ताकि वो भी मिल ले।
आप उसी समय पर नाराज़ हो गयी थी और हम सोच रहे थे की थोड़ा मज़ाक कर लेते हैं फिर आप भी समझ जाएंगे। दुर्भाग्य से बात बढ़ गयी किसी और बात को लेकर और आपने आपत्ति जता दी कि अगर शादी के पहले का कोई रिश्ता था तो आपसे शादी क्यों करी।
भाभी जी, आप याद करके देखिए, उस दिन सुबह इस बारे में बात चली और आपने कहा कि पता नहीं कौन है कैसी है यह मधुलिका जो लड़को को अपने गाड़ी में घूमती है और कॉलेज या दफ्तर छोड़ती है। इस पर चाचा जी ने कहा था कि वो एक बार में ५० से १०० जनो को अपनी गाड़ी में ले जाती है। आपने शायद ध्यान से सुना नहीं होगा। इसके अलावा जब आपने कहा कि ना जाने कितने पैसे बर्बाद किये होंगे तो मैंने कहा था कि एक बार में साठ पैसे, या ज़्यादा से ज़्यादा एक रूपए बीस पैसे खर्च किये। ऐसा कहा क्योंकि बस का टिकट तीस और साठ पैसे का है और अगर बीच में कही उतरते है तो भी एक रूपये बीस पैसे से अधिक खर्च नहीं हो सकते। याद करिए कि जब आप भी मुद्रिका से यात्रा करके लौटे थे तो आपसे पूछा था कि मधुलिका कैसी लगी।
तो भाभी जी, पत्र का सार, अर्थ और उद्देश्य यही है कि मैं आपको बताऊँ की मधुलिका कोई स्त्री नहीं, स्त्रीलिंग रचना जरूर है। हिंदी में बस स्त्रीलिंग है, और हमारे भाई साहब का किसी स्त्री या महिला से कोई भी सम्बन्ध दिल्ली में नहीं रहा। कृपया करके इस मुद्दे को, जो इस छोटे देवर का सिर्फ मजाक है, भूल जाइए। मुझे बहुत अफ़सोस है कि यह मुद्दा आपको बहुत तंग कर रहा है। उसके लिए एक बार और क्षमा प्रार्थना करता हूँ। जो भी सजा देना चाहे, वो सर आँखों पर।
आपका
सागर
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