बेहूदा, तो क्या

  

बेहूदा, तो क्या

हद में रह कर अपनी,
चादर हमेशा नाप कर,
पैर मैने फैलाए, फिर भी 
आजादी अपनी सीमित रखी
जान कर इस तथ्य को,
शौक आजादी से दूर रखे।

सुराही का पानी, विविधभारती,
गर्मी में चटाई पर सोना, 
फर्श पर बैठना, लेटना, 
करेला परमल घीया टिंडा
इन खुशियों को साथ लिया,
हद या बेहद, कभी न सोचा।

बेहूदा हरकत, जमीन पर सोते?
बेहूदा इंसान, बेहूदा पुराने सोच।
दिल एक बार तड़प उठा, सोचा,
ये भी गाली सुननी पड़ी!

फिर सोचा, यह तो सच शायद, 
मैं ही बेहूदा, इसका तो अर्थ ही 
अनर्थ, व्यर्थ, बेकार, निष्प्रोयजन,
निकम्मा, असभ्य, अशिष्ट, दुःशील,
बदतमीज़, बद अखलाक, अश्लील,
दुष्चरित्र, आवारा।

व्यर्थ ज्ञान की मैं बातें करता, 
अनर्थ जीवन मूल्यों की मैं 
वकालत करता।
बेकार, निष्प्रयोजन विगत सिद्धांत
उनको अभी भी सम्मान करता।
सफलता की परिभाषा में विफल,
असफल, निकम्मा, असभ्य, मैं रहा।

सभ्यता आज की अभी नहीं सीख पाया 
शिष्टता धन से नहीं आंक पाया, 
"आप" की जगह "तू" "तुम" नही 
समझ पाया, असभ्य, बेकार, 
बेहूदा ही रहा।

रहा तो रहा, तो क्या??
दुष्चरित्र, आवारा, बंजारा 
गैर को भी अपना समझता गया।
इससे बड़कर बेहूदा और कौन?
था, हूं, रहूंगा, अब तो यही रहूंगा।


अनूप मुखर्जी "सागर"



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