कोई आज लोरी सुनाता

 
कोई मुझे लोरी सुनाता,
मैं भी थोड़ा सो जाता। 

विश्व के महासागर पर
जीवन की नौका के अंदर 
उसके लहरों पर बहता लहराता 
मैं भी थोड़ा सो जाता। 
कोई कुछ गुनगुनाता,
मैं भी थोड़ा सो जाता।
लेकर मेरे सर को गोद में,
नैनों से उमड़ती स्नेहिल दृष्टि
उंगलियों में सिमटी समस्त सृष्टि,
आशिष बिखेरता मेरे माथे पर,
मै भी थोड़ा सो जाता।
कोई थोड़ा कुछ गा देता,
मैं भी थोड़ा सो जाता।
मृदु शान्त  स्वरो की सुगंध में
भोर पंछी के कूहूक लहरों पर,
फूलों के सुगन्धित स्वर लहरों पर,
जीवन के अहंकार, कलंक, 
प्रतिदिन के लांछना, वेदना, 
शत्रु, मित्रभाव से ऊपर उठकर,
मैं उसके गीतों में एकात्म हो जाता।
वो गीत मुझे सुला देते
मैं भी थोड़ा सो जाता।
कोई मुझे लोरी सुनाता,
मैं भी थोड़ा सो जाता। 

अनुप मुखर्जी "सागर"
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5 comments:

  1. Wow. Beautiful.

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  2. Mesmerizing use of poetic words conveying much deeper meaning. Hats off to you for thinking out of the box and penning that thinking so attractively.

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  3. Beautiful 👏👏👏

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  4. Beautifully expressed feelings of hope. Great writing.

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