अपना प्रतिबिंब खुद संभाले
जब संसार सारा है मूक वधिर
शानित करते सब अपने तीर।
शत्रु जैसे हर क्षण तकदीर
आत्मविश्वास देता जैसे चीर।
शानित करते सब अपने तीर।
शत्रु जैसे हर क्षण तकदीर
आत्मविश्वास देता जैसे चीर।
कभी खुद से ही खुद को करे अलग
आइए, खुद कुछ अपनी ही सुने।
खुद का सच खुद को ही सुनाएं
खुद की लिखी खुद को ही दिखाएँ
खुद की बीती खुद से ही लिखाएँ
खुद की कमी खुद को ही सुनाएँ
खुद को ही कुछ बेहतर बनाएं ॥
खुद का वधिरपन दूर करे
किसी और की कुछ सुने,
कुछ अपनी भी सुनाएँ ।
कंधे पर रख सके कोई हमारे
रीता मन, रोती आंखे,
अशांत मन, अब शांत हो।
किसी और की कुछ सुने,
कुछ अपनी भी सुनाएँ ।
कंधे पर रख सके कोई हमारे
रीता मन, रोती आंखे,
अशांत मन, अब शांत हो।
यह कन्धा हो भरोसा उसका।
सीला होंठ कहीं मुस्कुरा उठे,
हाथ मेरा उसका हाथ थामे।
दुनिया चाहे वधिर बने ,
मूक बने, बनती रहे।
सीला होंठ कहीं मुस्कुरा उठे,
हाथ मेरा उसका हाथ थामे।
दुनिया चाहे वधिर बने ,
मूक बने, बनती रहे।
भेड़ चाल से बाहर निकल हम,
वक्ता बनें, श्रोता बने,
आओ किसी का हाथ थामे हम
प्रतिबिम्ब अपना खुद ही बने हम।
खुद को खुद ही बनाएँ, खुद संभाले
अपनी खुदी से साथ ले हम
एक हाथ केवल, और संभालें ॥
अपनी खुदी से साथ ले हम
एक हाथ केवल, और संभालें ॥
यह प्रतिबिंब संभालने की क्षमता बहूत कठिन है
ReplyDeleteदिल भर आया कवि के दिल से निकले चिंतन को पढ़ कर
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