फिर कहीं

फिर कहीं




फिर कहीं एक फूल खिलते देखा,
खूबसूरत, सुंदर, अच्छा लगा,
फूल खिला है, तो खिलने दो न,
मसलो मत, शाख पर रहने दो न।

हर फूल गुलदस्ते का नहीं, तोड़ो मत,
गुलशन में ही रहने दो, नाम ना हो, 
बेनाम ही रहने दो न,
जहां का है, वहीं का होने दो।।

फिर कहीं दिया जलते देखा, 
जलता है, जलने दो न।
सोचो नहीं मंदिर या मजार,
देखो नहीं मंगल शनि वार।

दिया, प्रतीक किसी की आशा,
रोशनी चाहे थोड़ी, मिलने दो,
जिसको जो मिलता, मिलने दो,
छीन नहीं रहा कोई तुमसे कुछ,
विरक्त क्यों तुम होते, आगे बढ़ो,
दूसरा चल रहा है, चलने दो ना।

तृष्णार्त तुम हो, तृष्णा खुद मिटाओ,
अपना प्याला खुद उठाओ, खुद भरो,
उसके प्याले से ईर्ष्या मत करो,
अनिष्ट न करो, सृष्टि करो, सृष्टि करो।।


अनुप मुखर्जी "सागर"


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Know Thyself. Only You know yourself through you internal Potency