मेरा पड़ोसी, झा साहब। करीब आठ दस सालों से एक कॉलोनी में रह रहे है। रोटी बोटी का साथ बेशक न हो, लेकिन शादी, ब्याह, बीमारी, सुख दुःख का साथ रहा है हमेशा। सोचता था की हम दोनों परिपक्व मानसिकता के निदर्शन में अच्छे पड़ोसी का रिश्ता निभाते आ रहे हैं। लेकिन अपनी ही सोच पर मेरी अपने परिपक्व मानसिकता के होने पर ख़ुद को ही शक़ हो गया, इस कोरोना के कारण, या फिर इस कोरोना ने मुझे आईना दिखा दिया।
झा, जो लगभग मेरी की उम्र के हैं, उनके परिवार में उनके पिता सबसे बड़े थे जो अपनी बेटे, बहू और एक नाती और एक नातिन से साथ रह रहे थे। पिता जी, जिनको मैं चाचा जी कहता था, की तबियत काफी दिनों से ख़राब चल रही थी. उम्र ८० पर थी, रक्तचाप, मधुमेह का लम्बा साथ था और इनके कारण शरीर के कुछ और कलपुर्जे कभी ख़राब होते, और इलाज से थोड़े ठीक। इस ख़राब और ठीक का आवर्तन कई महीनो, या फिर सालों से चल रहा था।
कोरोना का आगमन हुआ, और उसके बाद दोस्तों का दोस्तों से मिलने, रिश्तेदारी निभाना, पड़ोसिओं से बात, सब मोबाइल फोन या फिर घर की बालकोनी में सिमट गया। चाचा जी बारे मिलनसार और चलती फिरती लाइब्रेरी होने के कारण उनके ज्ञान को बाँटना एक पसंद का समय यापन हुआ करता था जो कोरोना के आने सी बाधित हुई थी।
पिछले हफ्ते झा जी ने सवेरे घंटी घण्टी बजाई। मैंने दरवाज़ा खोला, और उनका चेहरा देख कर समझ गया कि कोई गंभीर समस्या है।
'सागर भाई साहब, पिता जी कल रात को हम सब को छोड़ कर चले गए '
'अरे, ऐसा क्या हुआ, कब, कहाँ पर, क्या हुआ था, कहाँ है ? '
'घर पर ही है। कल रात को अचानक ११ बजे तबियत ख़राब ज़्यादा ख़राब हो गयी। पड़ोस के डाक्टर गोयल जो देखते है, उनके नर्सिंग होम में ले गए थे, लेकिन बचा नहीं पाए। दिल का दौरा पड़ा था। ५ बजे के करीब प्राण निकल गए, ७ बजे घर पर लेकर आ गए। '
'अरे रात को मुझे उठा देते। '
'नहीं, आज कल आपको पता है कि कार में दो से ज़्यादा देखने पर, वो भी रात को, कोई परेशानी हो सकते है। इसलिए मैं और बेटा दोनों ले गए। '
'अच्छा मैं अभी आता हूँ, कोई काम जो तो बताइए। '
'काम तो कोई नहीं, आप इतने दिनों से जानते है, और सारे रिश्तेदार शायद ना आ पाए, आप आइये। सामान वगैरह मेरे चचेरे भाई आते हुए ले आएंगे। '
मैंने चाय नाश्ता जल्दी से किया और उनके घर पर चला गया। कुछ रिश्तेदार और दो तीन पड़ोसी आ गए थे। झा जी किसी दोस्त या सहकर्मी से अंग्रेजी में बतिया रहे थे। रात की बात बताई, नर्सिंग होम ले जाना, वापस आना इत्यादि। बातचीत के आखिर मैं वो बोले, "Yes dear, you know him for decades. It is sad for us for sure, but you also will miss him. It will take us about two hours. Please come before that. ..... yes, he was positive."
आखरी शब्द सुन कर दिमाग सुन्न हो गया, और एक दम से जैसे लोडशेडिंग में २०० वाट का बल्ब जल गया। पॉजिटिव, आज के ज़माने में पॉजिटिव मरीज़ और लाश घर पर !! अचानक मुझे ऑफिस का काम याद आ गया और वो भी ऐसा काम की आज न जाऊं तो नौकरी ही चली जायगी। झटके से उठ पड़ा, झा से माफ़ी माँगी की ऑफिस से संदेसा आया है, घर में घुसा। कपड़ों को, खुद को, डेटोल और साबुन से नहलाया, गरम पानी डाला अपने ऊपर, गरारे, काढ़ा , अदरक, तुलसी, दूध हल्दी, विटामिन, सब कुछ कर के मुँह छुपा कर निकल पड़ा की दो घंटे में वापस आ जाऊँगा।
उसके बाद एक हफ्ते तक झा के मकान का रुख नहीं किया। श्राद्ध के दिन डरते डरते गया, जाने से पहले हर तरफ से जासूस लगा दिए की कहीं घर पर कोई बीमार तो नहीं। श्राद्ध ख़तम जो जाने पर झा ने मेरा परिचय उनके बचपन के मित्र से कराया, जो चाचा जी की अंतिम यात्रा में शामिल होने करीब ६० किलोमीटर गाड़ी चलाकर आये थे। झा ने हलके से बोल दिया, आज जब पड़ोसी और रिश्तेदार भी डरते है, तब हमारे दोस्त यह है जो ६० किलोमीटर से आ गए।
उनके दोस्त ने बोलै, ' यार, चाचा जी को बचपन से देख रहा हूँ। उम्र होने पर कई लोग काफी नेगेटिव हो जाते है, but hats off to him. He was so positive, actually we have to learn the art of being positive from his life."
झा ने जवाब दिया, 'हाँ, बेशक, उनके जैसा पॉजिटिव कोई नहीं मिलता। हमने सिर्फ एक बुज़ुर्ग ही नहीं खोया, एक ऐसा वक्तित्व खो दिया जिनसे आज इस उम्र में भी हमें सीखने को मिलता था। '
मुझे लगा अपने गालों पर ज़ोर से थप्पड़ लगाऊं, या शर्म से आंखे नीची कर लूँ, या फिर झा से माफ़ी मांगू। कुछ भी ना कर पाया। श्राद्ध की पूजा और हवन ख़तम हुआ, नमस्कार कर के अपने घर चला आया।
१९ जून २०२०
शोसल मिडिया ने इतना डरा दिया है कि सपने में भी लोगों को कोरोना ही नजर आ रहा है।
ReplyDeleteNice one sir. Your writing skills are amazing.
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