सिर्फ तुम ही क्यों ?

सिर्फ तुम ही क्यों ?   

रचना   ६ मई २०१९ 



सिर्फ तुम ही क्यों,
दूसरा क्यों नहीं ?

राजा की नयी  नयी शादी 
दूसरे ही दिन आक्रमण शत्रु का।  
राजा ने घोषणा की युद्ध की , 
उठाया अस्त्र शस्त्र , उठाई तलवार, 
उठाया अपना ढाल, धनुष, तरकश। 

नयी  नयी रानी बोली, 
सिर्फ तुम क्यों, और नहीं है कोई?

राजा बोला , हे रानी, 
राज्य की सुरक्षा का प्रश्न है, 
राज्य न रहे, तो मैं भी नहीं; 
गर मैं न रहूँगा, तो तुम भी रहोगी नहीं , 
सिर्फ मैं तो नहीं, कई और भी है, 
अगर मैं नहीं, तो दूसरे भी नहीं । 

तुम बोली, सिर्फ मैं ही क्यों,
और कोई क्यों नहीं ?

पर तुम्हें न दिख रहे
छावनी में डटे यह सिपाहसलार ,
डटे यह सिपाही, डटे यह सवार।

तुम्हें नहीं दिख  रहे  उनके घर,
तुम्हें नहीं दिखते उनके घरवाले ,
नहीं दिखती उनकी मायें ,
रोते भाई बहन , डरती माँग।
नहीं दीखते तुम्हें झांकते पड़ोसी
प्रश्न पूछते सिले हुए बचपने होंठ।

तुम्हें दिखा केवल मैं,
शायद मैं भी नहीं,
केवल अपना संसार,
दिखा अपना राज, अपना पाट।

सोचो थोड़ा उन सिपाहीओं में
कई हैं जो सिर्फ कल ही ब्याहे
मेहँदी जिनकी अभी गाढ़ी   है,
विवाहित जिनका जीवन, अभी अछूता।

सोचो थोड़ा उन सिपाहीओं में
किसी की सन्तान शायद अभी 
सिर्फ दाई के हाथों में ही हो। 

या किसी की बेटी, 
कल डोली चढ़ने वाली हो। 
तुम्हें न दिखे ये सब, 
जो लड़ते सिर्फ देश के लिए। 

मैं तो फिर भी राजा हूँ ,
ये सब मेरी प्रजा  है,
और प्रजा है संतान समान। 

बोलो कैसे मैं बैठूँ घर पर, 
झोक कर इन सब को 
दुश्मन से युद्ध पर। 

नहीं प्रिये, यह मत  कहो,
सिर्फ तुम क्यों, 
कहो, तुम क्यों नहीं, 
क्यों तुम नहीं, क्यों मैं नहीं। 

क्यों तुम भी नहीं, क्यों मैं भी नहीं। 



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