क्यों भाई, आखिर क्यों?
हर जगह तो गाय गाय गाय,
पर लाठी की जोर आजमाइश
तो लो, आ गई भैंस।
वैसे तो लाठी के जोर से
गाय, बकरी, घर, जमीन,
या फिर कहे की भाई लोगों
ज़र, जोरू और जमीन,
उसकी, जिसकी लाठी।
अब लाठी चाहे बांस की हो,
तेल पिलाई लाठी हो,
या फिर तमंचा, या रामपुरी
इत्यादि में सिमट गई बिचारी,
या फिर रोकड़, नगद या हवाला
नाम तो कर गई लाठी की खाला।
जी हां, लाठी का नाम करे,
रास्ते में लठैत लेके चले या अकेले,
मन जैसे हो चलाने का, लाठी चले,
बिचारी भैंस को तो बख्श दो ना।
लाठी से आप अहंकार बड़ाओ,
सर फोड़ों, जेल जाओ, रिश्वत खिलाओ,
कुछ भी करो भैया,
भैंस भोली, थोड़ी मोटी, शांत,
काली तो क्या, छोड़ दो मैया।
वैसे भैया, लाठी सिर्फ भरोसा,
करना हमेशा ठीक नही,
आज तुम्हारी लाठी, तुम भए सेर
लेकिन भैया गर सावधान नहीं,
कल कोई आये सवा सेर।
सो भैंस आपकी आज,
आपकी लाठी के साथ।
कल जिसकी लाठी, उसका राज,
भैंस जायेगी उसके साथ।
अनूप मुखर्जी "सागर"
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