आज शाम को घूमने के बाद पार्क में बैठा था, एक दोस्त आ गया और मेरे पास बैठ गया। कल रात की बारिश के बाद आज की शाम का मौसम कुछ शांत और नम था, सो हम जैसे तीन बीसियों सावन देख लेने वालों के लिए अच्छा था।
:और सागर, क्या कर रहा है?
: कुछ नही यार, बस एक चक्कर लगा कर बैठा हूं, सोच रहा हूं, क्या करूं।
:चल यार, तू थोड़ा आगे तो निकला कि सोच रहा है कि क्या करेगा। मैं तो इसी सोच से आगे नहीं बड़ पा रहा की आगे क्या सोचूं।
सागर और पवन दोनो खुल कर हंस लिए।
पवन बोला: यार, कुछ न सोच, देख यह झील का फैलाव, नाव चलाते हुए जोड़े, बतख, चिड़िया, बच्चे, इनमे ही कुछ पल याद कर खुश हो ले ना, क्या जरूरत है हमेशा सोचने की?
सागर बोला: बहुत सही कहा यार, २३००० से ज्यादा शाम
हम लोग बिता चुके हैं। अगर हर दो हजार पे सिर्फ एक शाम भी याद कर ले तो भी दो चार दिन तो निकल ही जाएंगे।
पवन: बिल्कुल सही। अब बता तुझे किस शाम की बात याद आती है।
सागर: मुझे तो राजेश खन्ना और वहीदा रहमान की शाम याद आ रही है, वो शाम कुछ अजीब थी।
पवन: यार वो अकेले राजेशखन्ना की शाम तो नही थी। हम दोनो ने ही इवनिंग शो में देखा था और दोनो ने दोनो घरों में मार खाई थी। वैसे यार वहीदा रहमान का क्या कहना, चाचा को भी अच्छी लगती थी और हमें भी।
और दोनो हंस पड़े पुरानी स्मृति की गोद में थोड़ा विचरण कर के।
सागर: तू बोल तुझे क्या याद आता है।
पवन: मुझे तो सन्नाटा का गाना याद आ रहा है, क्योंकि उस गाने में जो कहा है वो ना जाने जिंदगी में कितनी बार बीती होगी, बस एक चुप सी लगी है, नहीं उदास नहीं, सहर भी यह रात भी, दोपहर भी मिली लेकिन, हमीं ने शाम चुनी।
सागर: बात तो सही है यार, अभी भी तेरे आने तक वो चुप ही तो लगी थी, न सोच की कोई दिशा, न कर्म की कोई तड़प, न समय की कोई चुनौती, दृष्टि भी दिशा हीन तैरती रहती है, बिना कुछ देखे, कानों में ध्वनियां आती रहती है, बिना कुछ सुने।
पवन: यार सागर, हम लोग जीवन की जिस शाम में है, अब इसकी सुबह तो होगी नही, लेकिन जरूरत क्या है कि इस शाम को हम पर हावी होने दे।
सागर: बात तो तू सही कह रहा है, जीवन का सागर अथाह है, हर मुहूर्त उस अथाह की लहरें हैं, और किसी लहर को नहीं पता कि कौन सी कब किनारे पर गिरेगी और खतम होगी। सही में, उस लहर का इंतजार करने के बजाय हर लहर के हिलोरो का आनंद लेना ही उचित है।
पवन: तूने तो साहित्य रचना कर दी यार।
सागर: भूमिका तो तूने लिख दी।
पवन: चल, फिल्मों के नही, अपनी कोई शाम याद कर।
सागर: अपनी? अचानक तो नही आ रही कोई। तू बता।
पवन: यार, याददाश्त भी तो धुंधली हो जाती है जरूरत पर। रात को जैसे पुरानी सारी बाते ख्वाब नाम आते रहते है। पता नही चलता की सिर्फ सपना हैं या पुरानी पिक्चर चल रही है।
सागर: सही, पुरानी फिल्म चल रही होती है। असल में मुझे सबसे ज्यादा महाभारत में एक नशा सा होता है। जितनी बार भी पड़ो देखो सुनो हमेशा कुछ नया। जहां तक साधारण शाम बिताने की बात है, न कभी ज्यादा दोस्त थे, और न कभी सिगरेट शराब की महफिल में गए। तुझे तो पता है की मैं ज्यादातर खुद में ही लीन रहा करता था, और आज भी रहता हूं।
पवन: हां, तूने कभी ज्यादा दोस्त बनाए ही नही। लेकिन शराब तूने कब और क्यों पीनी शुरू की यह एक पहेली है।
सागर: पहेली क्यों?
पवन: लोग स्कूल कॉलेज में शुरू करते है, कुछ कर्म जीवन में घुसने पर शुरू करतें है, तूने तब तो नही किया। बाद में क्यों?
सागर: पवन, मेरी जिंदगी तेरे सामने खुली किताब है। क्या तो वाकई में नहीं जानता?
पवन: देख, सच कहूं तो सोच सकता हूं, पर इस बारे में बात कभी नहीं हुई।
सागर: हां, बात शायद नहीं हुई। बस, यह समझ ले की दिल टूटने पर, दुख होने पर या खुशी होने पर तो शराब शुरू नहीं की, जिस दिन जिंदगी टूट गई, उस दिन शुरू की।
पवन: यार हम तो किसी शाम की सुनहरी याद करने बैठे थे, और कहा पहुंच गए।
सागर: 😂 😂, चल इसी बात पर आज तेरे साथ जाम लगाता हूं।
पवन: बस, हो गया शुरू, पीता तो साल में दो चार दिन है, बात ऐसे करेगा की रोज शाम को लेता हो।
सागर: यार नशा तो करता हूं हर शाम, कभी शराब, कभी कबाब, और कभी केवल अनुत्तरित प्रश्नों के जवाब, और कभी एकांत का।
पवन: मैं तो मानता हूं कि एक ऐसा नशा है जिसकी कोई तुलना ही नही है। वो है जब एकांत में ही मजा आने लगे।
सागर: सही बात है यार, ना झड़प, न तर्क कुतर्क, न ऊंची आवाज को जरूरत। बस खुद से ही बाते करो, खुद को खुद से चुरा लो।
पवन: चल, बाकी बातें फिर कभी, देख मच्छरों ने जदरदस्ती का रक्तदान शिविर लगा लिया है, अभी झुंड में आना शुरू करेंगे।
सागर: चल, फिर मिलेंगे।
अनूप मुखर्जी "सागर"
Very well narrated! Radhe Radhe 🙏
ReplyDeleteछोटी सी कहानी में जिंदगी की पूरी शाम बखूबी से सिमटा ली। क्या कहने आप के लेखन के।
ReplyDeleteVery well written
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