शुभ जन्माष्टमी
हे कान्हा, हे नंद के गोपाल,
शुभ जन्म दिन, ये जन्माष्टमी,
मनाए सभी हर्ष उल्लास से,
पर दुनिया ये कहां थमी?
डरी सहमी, राधा रानी आज की,
खोई चपलता, मधुर ललिता की,
कीचक नहीं, जयद्रथ नहीं,
नहीं कहीं अब रावण दुर्योधन,
सहमी हुई फिर भी, दृष्टि हर ललना की।
सहमी हुई फिर भी, दृष्टि हर ललना की।
दुःशासन के हाथ न थकते,
अब वस्त्रहरण करने को,
विकर्ण की अब आवाज न उठती
भाभी की लाज बचाने को ।
सभासदों के मस्तक न झुकते,
प्रतिदिन नारियों की चीख गूंजती,
अंध अंहकार में डूबे राजा रानी,
गूंगे बहरे भये दरबारी, कोतवाल सभी।
कितने सौ अपराध गिने,
पार हुए अरब खरब सब,
अब तो आओ, फिर से जागो,
निद्रित मानवता, फिर जगाओ।
न बंसी, न माखन, न लाड़ प्यार
उठाओ अब फिर सुदर्शन चक्र,
पाञ्चजन्य गूंजे भारत में ऐसे,
सहस्र ऐरावतों के चिंघाड़ जैसे।
झड़ जाए हाथ दुःशासनों के,
रक्त-प्लावन* निकले उनकी छाती से,
हर कीचक समा जाए धरती में,
पापीयों का नाश, जलसमाधि में।
आओ माधव, आओ गोवर्धन, आओ
मेरे कृष्ण कन्हैया, आओ गोविंद,
आओ विष्णु, विश्व रूप लेकर आओ,
हे र्दुजन संहारक, गदा, चक्र लेकर आओ।
एक अर्जुन, पंच पांडव कम पड़ेंगे,
रीढ़ हीन जनमानस को जगाओ,
दुर्दिन, दुर्गन्ध, दुर्निति भोगी समाज,
ध्वस्त, और फिर नवनिर्माण करो।
हे मधुसूदन, तारणहार, उत्तरा को भी
शस्त्र दिलाओ, समाज रक्षक हम बनें,
आत्म रक्षक बने भगिनी भ्राता सब,
इस जन्माष्टमी शस्त्र उठाओ।
शुभ जन्माष्टमी, शंख बजाओ।
अनुप मुखर्जी "सागर"
*रक्त-प्लावन- बाढ़ की तरह खून बहे

बिल्कुल सटीक और आज जिस हालात से दुनिया गुजर रही है, कृष्ण के अवतार ही पार लगा सकते हैं।
ReplyDeletePerfect for the time
ReplyDeleteLiked very nice
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