भाई दूज का सफर

 


छह दशकों से देख रहा हूं
भाई दूज का सफर।
एक पवित्र त्योहार,
जिसमे भाई के माथे पर
टीका करती बहन प्यारी।
आशीर्वाद देती, स्नेह बरसाती,
दही, चंदन का टीका लगती,
और दिल से कहती.

भाई के माथे पर दिया टीका
यम के द्वार पर गिरा कांटा।
यमुना जैसी देती यम को टीका
मैं भी देती अपने भाई को टीका
यम जिस तरह अमर है
मेरा भाई भी उसी तरह अमर हो।

न कोई उपहार, न कोई रुपया पैसा,
भाई से वो न मांगती कुछ,
भाई भी न मांगता बहन से कुछ।
मांगते दोनो एक दूसरे से,
बड़ों का आशीर्वाद, साथ बैठ
खाना, खेलना, पड़ना, छेड़ना,
मांगते एक दूसरे का साथ सिर्फ,
सरल, निर्मल, सहज, प्यार सिर्फ।

प्यार हो भाई बहन का ऐसा,
आंसू गर बहे कहीं, उंगलियां
दूसरे की पहुंचे, मोतियों को संभाले।
सहारा जब दरकार बहन को,
भाई का कंधा उसके पास हो।
भाई का मन जब बैठा जाय,
भारी दिल, बुझा मन, बालों को
तब सहलाती मिले उंगलियां बहन की।

उपहार की कोई कीमत नहीं,
कीमत आंको प्यार की नही।
स्वार्थ अपना, स्वार्थ समाज का,
स्वार्थों को रखो दूर, बहुत दूर।

बहन भाई का प्यार सब से निर्मल
बनाए ये हम सब को, सबल।
निर्मल, सहज, प्यार, सरल।
निर्मल सहज, प्यार, सरल।

अनूप मुखर्जी "सागर"


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