कल कल बढ़ता जाता हूँ

 




"आज" वही कल है,
जिस कल की फिक्र, तुम्हें कल थी..!

काल (समय) तो कलकल बहता
हम सब को यह कहता
कल जो आज था
आज वो कल हो गया
आज जो कल है
वो कल आज हो जाएगा
और आज भी कल हो जाएगा।

तभी तो जनाब कहता हूं
कोशिश हमेशा करता हूं
समयजी का सम्मान करता हूं
इसकी कलकल धारा के साथ
बहने की कोशिश करता हूं।

चट्टानें जो आती राह में
उनसे भिड़ जाता हूं
चट्टानों की भीड़ से भी
टकरा जाता हूं।
हर कल को आज बनाता हुआ
हर आज को कल में बदलता

मैं बड़ता जाता हूं
बढ़ता जाता हूं।

खुद को भी कभी महसूस
कर लिया करता हूं।
खुद के अंतर्व्यथा को
बहती धारा में अक्सर
धो लिया करता हूं।

मन की ज्वालामुखी से
उभरते रक्तिम सैलाब को
उगते सूरज की रक्तिम आभा
और नए दिन का उजाला
बना लिया करता हूं।

मैं
बड़ता जाता हूं।
बढ़ता जाता हूं।


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