अक्सर लगता है कि मैं
खुद से थक गया हूं।
अक्सर लगता है कि मैं
खुद से जीत गया हूं।
अक्सर लगता है कि मैं
अंतहीन दौड़ के दौर में
दूसरों से आगे रहने की
होड़ में, अब थक गया हूं,
लगता है कि शायद,
दूसरों से और नहीं,
अब सिर्फ खुद से ही
दौड़ लगानी है, औरों
से तो अब, थक गया हूं।
अक्सर लगता है कि जब,
दुनिया खुश होती रही,
हराया मुझे, यह जता कर,
तभी महसूस करता हूं,
मैं तो खुद से लड़ कर,
खुद को समझा कर,
खुद को हरा कर,
खुद ही जीत गया हूं।
मैं हारते हारते खुद से,
जब लगा की थक गया हूं
तभी अपना पांचजन्य उठा,
फूंकता, ध्वनित शंख गूंजता,
और मैं खुद को बताता हूं,
थका नही, खुद से जीतता हूं।
खुद से जब जब थक जाता हूं,
तब तब थकान को ही थका कर
तब खुद से जीत भी जाता हूं।
खुद से थक भी गया हूं
खुद को जीत भी गया हूं।
अनूप मुखर्जी "सागर"
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