चिड़िया का घोंसला








चिड़िया का घोंसला

चिड़िया एक, प्यारी, कुछ सहमी सी,
चिड़ा साथ, वो भी कुछ प्यारा सा।

रहते दोनों डाल डाल, घोंसले सजाते
मिल दोनों तिनके सजाते, नीड़ बसाते।

घोंसला पर वो किराए का, दिल में कसक,
खुद का हो, न छोड़ूं कभी, दिल में ललक।

डरी हुई कुछ रहती चिड़िया,
भोली, चुप चुप रहती चिड़िया,
किस दिन यह शाख कोई काटे,
कहीं कभी न यह घोंसला बंटे।

अपना भी कोई घोंसला होता,
शाख भी कोई अपना होता।

पतझड़ हो या सावन, या शीत 
शाख अपनी, घोंसला अपना,
किराए का न ढूंढती घोंसला,
खुद का इक घोंसला, था सपना।

दिन महीने, यूंही जाते, सपना देखती,
तिनके संजोती, शाख अपना ढूंढती।

संजोये सभी तिनके, समेटे पोटली,
अबकी बार, खुद की शाख, घोंसला।

सहमी सी वो चिड़िया, अब बहुत खुश,
सपने सजाए युगल, बहादुर, नहीं दुर्बल,
मेहनत मशक्कत करते दोनों, चपल,
सजाते अब वो अपना, खुद का, घर।

चहकते, महकते, समय बहता कलकल,
वर्षित होता ईश्वरिक आशीष, हर पल।



अनुप मुखर्जी "सागर"

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