मानव माँस की चाह : अनुवाद

मानव  माँस की चाह 
अनुवाद 
(बांग्ला कविता डॉक्टर श्रीमती पियाली पालित के माध्यम से श्री देवाल देव की सौजन्य से प्राप्त )

गिद्ध के बच्चे  ने ज़िद पकड़ी 
मानव माँस खाऊंगा मैं। 



माँ ले के आयी सूअर का माँस , 
मानव माँस मैं कहा से लाऊँ ?
बच्चा गिद्ध ज़ोर से रोए, 
'मनुष्य खाऊंगा मैं, ओ  मेरी माँ' 

गुस्साई लाल आँखों के साथ 
माँ बोली, धीरज रख बेटा , 
थोड़ा धीरज रख ले। 

अगले दिन माँ ढूंढ के लायी 
कही से एक गाय का टुकड़ा। 
बच्चा गिद्ध न थमे रोना, 
चीख़  कर बोले, नहीं, मुझे नहीं खाना। 

बच्चे गिद्ध को पँख में छुपा कर 
बोली माँ गिद्ध, सोच कर 
'कल खा लेना बेटा, नर माँस  तू 
इतना मिलेगा, खा लेना दो महीने तू '

मुँह अँधेरे माँ गिद्ध निकली 
लेकर सूअर का माँस। 
छोड़ आयी टुकड़ा वो 
एक मस्जिद के पास। 

फिर लेकर निकली वो, 
गाय का मांस वो 
फेंक आयी टुकड़ा लेकर, 
मंदिर के द्वार जो। 


दोपहर तक ही खबर फैली  
हज़ारों की लाशें बिछी, 
उड़ी गिद्ध बच्चे को लेकर 
और बोली, देख क्या मज़ा। 
गाय - सूअर के माँस  का चारा 
अगर मिल जाये बेटा 
मनुष्य मारना बहुत आसान। 

जो तुझे इच्छा हो , चख कर देख ले बेटा 
आँख, कान, होंठ या नाक,
खा ले सब, बता क्या ज़्यादा अच्छा 
बच्चा गिद्ध न खाये ठीक से 
मुँह बिगड़ा बना के बैठा 
जो रस सोचा मिलेगा, 
कुछ भी न वैसा लग रहा। 

बिगड़े स्वाद भरे मुंह से, 
पूछे बच्चा माँ से 
मनुष्य का माँस इतना 
ख़राब क्यों है माँ ?

माँ गिद्ध बोली प्यार से, 
बेटा , ये पूरे मनुष्य नहीं रे। 

मार्च १० २०२० 

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