अपना प्रतिबिम्ब खुद संभाले भाग 2

 

अपना प्रतिबिम्ब खुद संभाले भाग 2



संसार है सारा मूक बधिर जब
करो खुद से खुद को अलग तब
खुद का सच खुद को ही सुनाएं
खुद की लिखी खुद को ही दिखाएँ 
खुद की बीती खुद से ही लिखाएं
खुद को ही कुछ बेहतर बनाएं ॥

स्वयं सुने अंतर्मन की आवाज
औरौं की भी जी भर कर सुने
सूने मन का सूना पन शून्य करे
मन की कुछ सुनाएं, कुछ सुने।

कंधे पर रख कोई हमारे
रीता मन, रोती आंखे, 
शीतल प्रलेप मिले दिल से दिल को
 भरोसा उसका हो मेरी कांधे ।

मिले उसमे मुझे भी एक हाथ
सहला सके जो दुखता मन
मिले दिल को एक दिल, 
दोस्त दोस्त मिले, खिले जो दिल।

सीला हुआ होंठ कहीं , मुस्कुरा उठे, 
हाथ हमारा जब उंगली थामे ।

दुनिया मूक वधिर बनती रहे
तोड़ रुढ़िवादी जंजीर हम, 
वक्ता बनें, श्रोता बने, 
सांसों को मुक्त करें हम।।

किसी का हाथ थामे आओ
वाणी दें, अभिव्यक्ति दें
खुद बनाने, खुद सुनाने
प्रतिबिम्ब  का विश्वास दें।

खुद का प्रतिबिम्ब खुद को सुने,
ध्वनित हो विश्वास विश्व में।




By Swapna Bhattacharya 25 October 2020

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